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## Adipurana
**Verse 75:** Then, the word "Triloka-vijaya-dharma-murti-pada" should be uttered twice, followed by "Dharma-nemi-pada" twice, and then "Swaha".
**Verse 76:** After that, the learned Brahmanas should recite the "Kamya-mantra" according to the prescribed method, as all mantras are considered by the wise to be primarily for the attainment of desired results.
**Verse 77:** These seven "Peethika-mantras" should be known by the best of Brahmanas. They should be used for the worship of the Siddhas during the performance of rituals like "Garbha-dhana" (conception ceremony) and others.
**Verse 78:** These mantras are called "Kriya-mantras" during the performance of rituals like "Garbha-dhana" and others. In the "Sutras" (texts) of the "Ganadharas" (Jain teachers), they become "Sadhana-mantras" (mantras for spiritual practice).
**Verse 79:** When performed according to the prescribed method, these same mantras are called "Ahuti-mantras" (mantras for offering oblations) during the daily rituals of "Sandhya" (twilight prayers) and the worship of the deities in the three fires.
**Verse 80:** In the presence of the Siddhas, one should chant these mantras one hundred and eight times, after offering incense, flowers, rice grains, and water.
**Verse 81:** Then, one who has attained mastery over the Siddha-vidya (knowledge of the Siddhas) should perform the rituals with these mantras, wearing white clothes, being pure, wearing the sacred thread, and with a calm mind.
**Churnika (Commentary):**
The collection of "Parameshthi" mantras is as follows:
* "Satya-jataaya namah"
* "Arha-jataaya namah"
* "Parama-jataaya namah"
* "Parama-arhataaya namah"
* "Parama-rupaaya namah"
* "Parama-tejase namah"
* "Parama-gunaya namah"
* "Parama-sthanaaya namah"
* "Parama-yoginay namah"
* "Parama-bhagyaya namah"
* "Parama-ardhaye namah"
* "Parama-prasadaaya namah"
* "Parama-kankshitaaya namah"
* "Parama-vijayaaya namah"
* "Parama-vijnaanaaya namah"
* "Parama-darshanaaya namah"
* "Parama-veeryaaya namah"
* "Parama-sukhaya namah"
* "Sarva-jnaaya namah"
* "Arhate namah"
* "Parama-eshthine namo namo"
* "Parama-netrae namo namo"
* "Samyag-drishte samyag-drishte"
* "Triloka-vijaya triloka-vijaya"
* "Dharma-murte dharma-murte"
* "Dharma-neme dharma-neme swaha"
* "Seva-phalam shat-parama-sthanaam bhavatu"
* "Apa-mrityu-vinashanam bhavatu"
* "Samadhi-maranam bhavatu"
One should say this and then utter the word "Samyag-drishti-
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आदिपुराणम्
स्तां' त्रिलोकविजयधर्ममूर्त्तिपदे ततः । धर्मनेमिपदं वाच्यं द्विः स्वाहेति ततः परम् ॥७५॥ काम्यमन्त्रमतो ब्रूयात्पूर्ववद्विधिवद्विजः । काम्यसिद्धिप्रधाना हि सर्वे मन्त्राः स्मृता बुधैः ॥७६॥
चूर्णि :- सत्यजाताय नमः, अर्हज्जाताय नमः, परमजाताय नमः, परमार्हताय नमः, परमरूपाय नमः परमतेजसे नमः, परमगुणाय नमः, परमस्थानाय नमः, परमयोगिने नमः, परमभाग्याय नमः, परमर्द्धये नमः, परमप्रसादाय नमः परमकाङ्क्षिताय नमः, परमविजयाय नमः, परमविज्ञानाय नमः, परमदर्शनाय नमः परमवीर्याय नमः, परमसुखाय नमः, सर्वज्ञाय नमः, अर्हते नमः, परमेष्ठिने नमो नमः, परमनेत्रे नमो नमः, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे त्रिलोकविजय त्रिलोकविजय धर्ममूर्ते धर्ममूर्ते धर्मनेमे धर्मनेमे स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु ।
एते तु पीठिकामन्त्राः सप्त ज्ञेया द्विजोत्तमैः । एतैः सिद्धार्चनं कुर्यादाधानादिक्रियाविधौ ॥७७॥ क्रियामन्त्रस्त एते स्युराधानादिक्रियाविधौ । सूत्रे गणधरोद्धायें यान्ति साधनमन्त्रताम् ॥७८॥ संध्याग्निये देवपूजने नित्यकर्मणि । भवन्त्याहुतिमन्त्राश्च त एते विधिसाधिताः ॥ ७९॥ सिद्धार्थ्यासंनिधौ मन्त्रान् जपेदष्टोत्तरं शतम् । गन्धपुष्पाश्नतार्वादि निवेदनपुरःसरम् ॥८०॥ सिद्धविद्यस्ततो मन्त्रैरेभिः कर्म समाचरेत् । शुक्लवासाः शुचिर्यज्ञोपवीत्यव्यग्रमानसः ॥८१॥ कहना चाहिए और उसके बाद सम्बोधनान्त सम्यग्दृष्टि पदका दो बार प्रयोग करना चाहिए ||७४ || तथा इसी प्रकार त्रिलोकविजय, धर्ममूर्ति और धर्मनेमि शब्दको भी दो-दो बार उच्चारण कर अन्तमें स्वाहा पद बोलना चाहिए अर्थात् सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे, त्रिलोकविजय त्रिलोकविजय, धर्ममूर्ते धर्ममूर्ते धर्मनेमे धर्मनेमे स्वाहा ( हे सम्यग्दृष्टि, हे तीनों लोकों को विजय करनेवाले, हे धर्ममूर्ति और हे धर्मके प्रवर्तक, मैं तेरे लिए हवि समर्पण करता हूँ ) यह मन्त्र बोलना चाहिए ॥७५॥ तत्पश्चात् द्विजोंको पहलेके समान विधिपूर्वक काम्यमन्त्र पढ़ना चाहिए क्योंकि विद्वान् लोग सब मन्त्रोंसे अभीष्ट फलकी प्राप्ति होना ही मुख्य फल मानते हैं ॥ ७६ ॥
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परमजाताय नमः परमार्हताय नमः, परमपरमस्थानाय नमः, परमयोगिने नमः, परमपरमकांक्षिताय नमः, परमविजयाय नमः,
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परमेष्ठी मन्त्रोंका संग्रह इस प्रकार हैं : सत्यजाताय नमः, अर्हज्जाताय नमः रूपाय नमः, परमतेजसे नमः, परमगुणाय नमः भाग्याय नमः, परमर्द्धये नमः, परमप्रसादाय नमः, परमविज्ञानाय नमः, परमदर्शनाय नमः, परमवीर्याय नमः परमसुखाय नमः सर्वज्ञाय नमः, अर्हते नमः, परमेष्ठिने नमो नमः, परमनेत्रे नमो नमः, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे, त्रिलोकविजय त्रिलोकविजय, धर्ममूर्ते धर्ममूर्ते, धर्मनेमे धर्मनेमे स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु ।
ब्राह्मणोंको ये ऊपर लिखे हुए सात पीठिका मन्त्र जानना चाहिए और गर्भाधानादि क्रियाओं की विधि करनेमें इनसे सिद्धपूजन करना चाहिए ॥७७॥ गर्भाधानादि क्रियाओंकी विधि करनेमें ये मन्त्र क्रियामन्त्र कहलाते हैं और गणधरोंके द्वारा कहे हुए सूत्र में ये ही साधन मन्त्रपनेको प्राप्त हो जाते हैं || ७८ || विधिपूर्वक सिद्ध किये हुए ये ही मन्त्र सन्ध्याओंके समय तीनों अग्नियोंमें देवपूजनरूप नित्य कर्म करते समय आहुति मन्त्र कहलाते हैं ||७९ || सिद्ध भगवान्को प्रतिमाके सामने पहले गन्ध, पुष्प, अक्षत और अर्घ आदि समर्पण कर एक सौ आठ बार उक्त मन्त्रोंका जप करना चाहिए ॥ ८० ॥ तदनन्तर जिसे विद्याएँ सिद्ध हो गयी हैं, जो
१ द्वौ वारी । २ भवेताम् । ३ सत्यजातायेत्यादयः । ४ गर्भाधानादि । ५ समर्पण ।
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