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102 Some Mandala-adhipas (rulers of kingdoms) came at the behest of the Lord, while others, the valiant warriors, came uninvited. ||65|| "We must go to foreign lands and conquer the Mlechchha (non-Aryan) rulers," thinking thus, the Samantas (vassals) had almost prepared their army equipped with bows and arrows. ||66|| The Dhanurdharas (archers) with their quivers full of arrows of various sizes, seemed to be saying to their masters, "We are your debt-bound servants, and we are ready to serve you in return for your sustenance." ||67|| Many archers, with a roar, were drawing their bows with strings, as if they were trying to pull out the lives of their enemies. ||68|| Some warriors were holding swords in their hands and weighing them, as if they wanted to measure the weight of the honor bestowed upon them by their master. ||69|| "The warriors, adorned with armor and with shining swords, looked like huge serpents with loose skin and flickering tongues." ||70|| Some warriors, with pride, were moving around with swords in their hands and roaring, as if they were seeing their enemies face to face. ||71|| The chariots, filled with fiery arrows, Mahastambhas (large pillars), swords, bows, helmets, and armor, were like moving armories, decorating the streets. ||72|| The charioteers, though carrying heavy weapons on their chariots, were moving with great speed. ||73||
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________________ १०२ आदिपुराणम् आहूताः केचिदाजग्मुः प्रभुणा मण्डलाधिपाः । अनाहूताश्च संभेजुर्विभुं चारभटाः परे ॥६५॥ विदेशः किल यातव्यो जेतव्या म्लेच्छभूमिपाः । इति संचिन्त्य सामन्तैः प्रायः सज्ज धनुर्बलम् ॥६६॥ धन्धिनः शरनाराचसंभृतेषुधिबन्धनैः । न्यवेदयन्निवात्मानमृणदासमधीशिनाम् ॥६७॥ धनुर्धरा धनुः सज्ज्यमा स्फाल्य चकृपुः परे । चिकीर्षव इवारीणां जीवाकर्ष सहुंकृताः ॥६८॥ करवालान् करे कृत्वा तुलयन्ति स्म केचन । स्वामिसत्कारभारेण नूनं तान् प्रमिमित्सवः ॥६९॥ 'संवर्मिता भृशं रेजुर्भटाः प्रोल्लासितासयः" । निर्मोकैरिव "विश्लिष्टैः ललजिह्वामहाहयः ॥७०॥ साटोपं स्फुटिताः केचिद् वल्गन्ति स्माभितो भटाः । अस्युद्यताः" पुरोऽरातीन् पश्यन्त इव संमुखम्॥ "अस्वैय॑स्त्रैश्च शस्त्रैश्च शिरस्त्रैः सतनुत्रकैः । दधुर्जयनशालाना" लीलां रथ्याः सुसंभृता ॥७२॥ रथिनो रथकट्यासु गु/रायुधसंपदः । समारोप्यापि पत्तिभ्यो भेजुरेवातिगौरवम् ॥७३॥ तथा और भी अनेक राजा लोग अपनी समस्त सेना और सवारियां लेकर उसी समय आ पहुँचे ॥६४॥ कितने ही मण्डलेश्वर राजा भरतके बुलाये हुए आये थे और कितने ही शूर वीर लोग बिना बुलाये ही उनके समीप आ उपस्थित हुए थे ॥६५॥ अब विदेशमें जाना है और म्लेच्छ राजाओंको जीतना है यही विचार कर सामन्तोंने प्रायः धनुष-बाणको धारण करने वाली सेना तैयार की थी ॥६६॥ धनुष धारण करनेवाले योद्धा छोटे-बड़े बाणोंसे भरे हए तरकसोंके बाँधनेसे ऐसे जान पड़ते थे मानो वे अपने स्वामियोंसे यही कह रहे हों कि हम लोग आपके ऋणके दास हैं अर्थात् आज तक आप लोगोंने जो हमारा भरण-पोषण किया है उसके बदले हम लोग आपकी सेवा करनेके लिए तत्पर हैं ॥६७॥ हुंकार शब्द करते हुए कितने हो धनुषधारी लोग अपने डोरीसहित धनुषको आस्फालन कर खींच रहे थे और उससे वे ऐसे जान पड़ते थे मानो शत्रुओंके जीवोंको ही खींचना चाहते हों ।।६८॥ कितने ही योद्धा लोग हाथमें तलवार लेकर उसे तोल रहे थे मानो स्वामीसे प्राप्त हुए सत्कारके भारके साथ उसका प्रमाण ही करना चाहते हों ॥६९।। जो कवच धारण किये हुए हैं और जिनकी तलवारें चमक रही हैं ऐसे कितने ही योद्धा इतने अच्छे सुशोभित हो रहे थे मानो जिनकी काँचली कुछ ढीली हो गयी है और जीभ बार-बार बाहर लपक रही है ऐसे बड़े-बड़े सर्प ही हों ॥७०॥ कितने ही योद्धा अभिमानसहित हाथमें तलवार उठाये और गर्जना करते हुए चारों ओर इस प्रकार घूम रहे थे मानो शत्रुओंको अपने सामने ही देख रहे हों ॥७१॥ आग्नेय बाण आदि अस्त्र, महास्तम्भ आदि व्यस्त्र, तलवार धनुष आदि शस्त्र, शिरकी रक्षा करनेवाले लोहके टोप और कवच आदिसे भरे हुए रथोंके समूह ठोक आयुधशालाओंकी शोभा धारण कर रहे थे ॥७२।। रथोंमें सवार होनेवाले योद्धा यद्यपि भारी-भारी शस्त्रोंको रथोंपर रखकर जा रहे थे तथापि १ वीरभटाः । 'शूरवीरश्च विक्रान्तो भरश्चारभटो मतः' इति हलायुधः । २ नानादेशः । ३ भूभुजः म०, द०, अ०, ५०, स०, ल०, इ० । ४ सन्नद्धीकृतम् । ५ ज्यासहितम् । ६ आताड्य, टणत्कारं कृत्वा। स्फाल्या चकृपुः ब०, द०, अ०, म०, प०, स०, ल०, इ०। ७ आकर्षयन्ति स्म । ८ भारेण सह । ९.प्रमातुमिच्छवः । १० धृतकवचाः। ११ प्रकर्षेणोल्लासितखड्गाः। १२ शिथिलैः । १३ चलत् । १४ आस्फालिते भुजाः । १५ खड्गे उद्युक्ताः । १६ शत्रून् प्रत्यक्षमालोकयन्निव । १७ दिव्यायुधैः । १८ गरलगुडाद्यायुधः । १९ सामान्यायुधैः । २० शीपकः । २१ शस्त्रशालानाम् । २२ वीथ्याः । २३ रथिकाः । २४ रथसमहेषु । २५ अतिश्लाचनम् । अति भारयुक्तमिति ध्वनिः, अत्यर्थ वेगं गता इत्यर्थः ।
SR No.090011
Book TitleAdi Puran Part 2
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2011
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size21 MB
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