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सवैया-टीका
सवैया गुण एक एक जाके परजे' अनंत करे, परजे में नंत' नृत्य नाना विसतर्यो है। नृत्य में अनंत थट' थट में अनंत कला, कला में अखंडित अनंत रूप धर्यो है ।। रूप में अनंत सत् सत्ता में अनंत भाव, भाव को लखावहु अनंत रस भर्यो है। रस के स्वभाव में प्रभाव है अनंत 'दीप', सहज अनंत यो अनंत लगि कर्यो है।।१।।
टीका गुण सूक्ष्म के अनंत पर्याय-ज्ञानसूक्ष्म, दर्शनसूक्ष्म, वीर्यसूक्ष्म, सुखसूक्ष्म, सर्वगुणसूक्ष्म, सो सूक्ष्म गुण तीका पर्याय सूक्ष्म अनंत फैल्या। सो गुण गुण में आया। एक ज्ञानसूक्ष्म ता सूक्ष्म को पर्याय तीमें ज्ञान । सो ज्ञान अनंतो अनंत गुण आतमा अस्तित्व, वस्तुत्व. द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरुलघुत्व, प्रभुत्व, विभुत्व. इत्यादि गुण । अनंतज्ञान जान्या दर्शन ने ज्ञान जाने वा वीर्य ने वा सुख ने वा वस्तुत्व ने वा प्रमेयत्व ने इत्यादि प्रकार अनंतगुण ने ज्ञान जाने । ज्ञान अनंतज्ञानपणारूप नाच्यो" सो अनंत नृत्य भयो। यो निज द्रव्य को ज्ञान द्रव्य ने जाणे, सो द्रव्य अनंत गुणमय वैसो द्रव्य का जानपणा रूपज्ञान नाच्यो छै। सो अनंत नृत्य भयो, ती नृत्य में द्रव्य को जानपणो छै| सो द्रव्य अनंतगुण को थट लिया छ। सो गुण अनंत को थट
१ पर्याय, २ अनन्त, ३ घाट. ४ अपने-अपने लक्षण सहित, ५ उसका, ६ को, ७ नृत्य किया. परिणमित हुआ. ८ उस. ६ है
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