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आये । सो ज्ञान के आनंद पुत्र भये हरष भया, सब के हरष मंगल भया' ।
आगे दरसनगुण के दरसन-परिणति नारी है, सो अपनी नारी का विलास दरसन करे है सो कहिये हैं
दरसन - परिणति नारी दरसन अग सो मिले है, तब दरसन अपने अंग करि विलसे है। दरसन तैं नारी है नारी तैं दरसन सरूप सधे है। दरसन परिणति नारी का सुहाग भी दरशन पति सों मिले है। जब तक दरशन सों दूरि थी, तब तक निर्विकल्प रस न पीछे थी, व्याकुल रूप थी । तातैं अनंत सर्वदर्शित्व शक्ति का नाथ अपना पति भेंटत ही अनाकुल दसा धरे है। ऐसी महिमा वठैर है। सारा वेद-पुराण जाको जस गावे है | दरसन वेदे, तब वा परणति सुद्ध परिणति ते दरसन सुद्ध; दरसने के अनुसार परिणति है। परिणति के अनुसार दरसन है | परिणति जब दरसन धरे, आप आप में, तब सुखी है | दरसन अपनी परिणति न धरे, तब आप अति असुद्ध भया, तब सुद्धता न रहे । परणिति को दरसन बिना विश्राम नहीं दरसन को परिणति विना सुख नहीं, सुद्धता नहीं। परिणति दरसन के वेदिवे गुण का प्रकाश राखे है । न परणवे, तो देखना न रहे। दरसन न होय, तो परिणति किस के आश्रय होइ, किस को परणवे ? यह परिणति दरसन पति सों मिलि संभोगसुख लेहै| दरसनपरिणति को अपने अंग सों मिलाय महासंभोगी हुवा वरते है। तहां दोऊ के संभोग करि आनन्द नाम पुत्र की उत्पत्ति होइ है । तब सब गुण परिवार महा आनंदी भये मंगल को करे हैं। तातैं इस नारी का पुरुष का विलास वरणन करने को कौन समर्थ है ?
१ हुआ, २ वहाँ, आत्मलोक में,
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