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आगे परमातमा राजा के उमराव' अनन्त हैं,
ज्याह में केतायेकर नाम लिखिये है
प्रभुत्व नाम, विभुत्व नाम, तत्त्व नाम, अमलभाव नाम, चेतनप्रकाश नाम, निजधरम नाम असंकुचितविकास नाम. त्यागउपादानशून्यत्व नाम, परणामशक्तित्व नाम, अकर्तृत्व नाम, कर्तृत्व नाम, अभोक्ता नाम, भोक्ता नाम, भाव नाम, अभाव नाम, साधारणप्रकाश नाम, असाधारणप्रकाशकर्त्ता नाम करम नाम, करण नाम, संप्रदान नाम, अपादान नाम, अधिकरण नाम, अगुरुलघु नाम, सूक्ष्म नाम सत्ता नाम, वस्तुत्व नाम, द्रव्य नाम, प्रमेयत्व नाम, इत्यादि अनंत हैं। अपने-अपने औधे का काम सब करे हैं। इनका विशेष आगे कहेंगे ।
प्रदेश देसन में गुण जो पुरुष कहे अरु गुण परिणति नारी कही, ते विलास कैसे करे हैं? सो कहिये है
वीर्यगुण नर के परिणति वीर्य की नारी सो दोउ मिलि भोग करे हैं सो कहिये है । वीर्य के अनंत अंग हैं- सत्तावीर्य, 1 ज्ञानवीर्य, दरसनवीर्य, प्रमेयवीर्य ऐसे अनंतगुणके अनंत वीर्यरूप अनंत अंग करि अपनी नारी जु परिणति ताके भोग को करे। ऐसे सब अंग में वीर्य परिणति परणई। वीर्य परिणति का अंग वीर्य नर सों व्याप्य व्यापक भया, तब दोऊ अंग के मिलन ते अतेन्द्री भोग भया, तब आनंद पुत्र भया । तब सब गुण परिवार में वीर्य शक्ति फैलि रही थी, तातैं वह वीर्य की शक्ति तैं हिपन्न थे। के पुत्र भये, सब गुण वीर्यअंग था, वीर्य अंग परिफूलित भये, तब सब गुण परिकूलित भये; तातैं सब गुण नर में मंगल भया । ऐसे ही ज्ञान नर मंत्री पद का धणी था ।
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१ अधिकारी, शक्तिसम्पन्न २ जिनमें से, ३ कितने ही ४ पद, ५ निष्पन्न, निर्मित ६ प्रफुल्लित
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