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आगे सत्ता को यति कहिए. असत' विकार को जीत्या, तातै यति कहिये। सत्ता में असत्ता नाही, ताक् यति। ताका विशेष लिखिये है
__सत्ता में नास्ति अभाव भया, नास्ति के विकार जीत्ये, ताते यत्ति। ज्ञानसत्ता ने ज्ञान का नास्ति विकार मेट्या, दरसनसत्ता ने दरसन का नास्तिपणा दूरि किया, वीर्य सत्ता ने अवस्तुत्व का अभाव किया। या प्रकार सब गुण की सत्ता प्रतिपक्षी अभाव करि तिष्ठे है, तातें, यति कहिए।
आगे सत्ता को मुनिसंज्ञा कहिये है
सत्ता अपने स्वरूप का प्रत्यक्ष प्रकाश सासता लक्षण करि करे अथवा प्रत्यक्ष केवलज्ञान सत्ता धरे, तातै मुनि कहिये।
आगे वस्तुत्व को रिषि आदि भेद लगाइये है,
तामें रिषिवस्तुत्व को कहियेसामान्यविशेषरूप वस्तु ताके भाव को धरे वस्तुत्व है सो सब में व्यापक है । सब गुण में सामान्यविशेषभावरूप वस्तुपणा करि रिद्धि वस्तुत्व ने सब को दी है। जेते गुण हैं तेते सामान्यविशेषता रूप हैं। ज्ञान में जानपणा मात्र सामान्यभाव न होय, तो लोकालोक प्रकाशक विशेष कहां ते होय? ताते सामान्य ते विशेष है, विशेष ते सामान्य है। सामान्यविशेषभाव रिद्धि वस्तु ते है। ऐसे ही दरसन देखवे मात्र न होय, तो लोकालोक का निरविकल्प सत्ता मात्र वस्तु न देखे, तातें सामान्य विशेष धरे है। सब गुण सामान्यविशेषभाव रिद्धि धरे है । सो सब एक वस्तुत्व की रिद्धि फैली है। वस्तु द्रव्यरूप द्रव्यवस्तु १ विभाय. विकारी भाव, २ दूर किया, अभाव किया. ३ विरोधी
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