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पाया । ज्ञान वस्तुत्व का 'वान' सरूपज्ञान वस्तुत्व में रहे है, तहां ज्ञान वस्तुत्व वानप्रस्थ कहिये ।
आगे दरसन वस्तुत्व का वानप्रस्थ कहिये है___ दरशन देखने मात्र परणम्या दरसन का सामान्य स्वपर भेद जुदे देखे है यह दरसन का विशेष है। दरसन न देखे पर को, तब सर्वदर्शित्व शक्ति न रहे | दरसन के अभाव होते निर्विकल्प सत्ता का अवलोकन न रहे, अनंत ज्ञेय पदार्थ का निर्विकल्प सत्ता सरूप अवलोकन मिटता । तातें दर्शन सामान्य विशेष रूप वस्तु तिसका भाव दरसन वस्तु है। तिसका वान कहिये सरूप तिस में तिष्ठता सो दरसन वस्तुत्व वानप्रस्थ कहिये। ऐसे सब गुण का वस्तत्व मिलि एक वस्तुत्व नाम गुण है, तिस में रहना सो वस्तुत्व वानप्रस्थ कहिये।
आगे द्रव्यत्व का वानप्रस्थ कहिये है
गुण पर्याय को द्रवे सो द्रव्य कहिये। द्रव्य के भाव को द्रव्यत्व कहिये | ज्ञान जानन रूप है सो आतमा का स्वभाव है। जो आतमा जानन रूप न परणवता. तो जानना न होता, जानना न भये ज्ञान न होता, तारौं आतम के परिनमन ते ज्ञान भया, परिनमन वार द्रवत्व गुण ते भया। द्रवत्व गुण के भये द्रव्य द्रवीभूत भया, जब द्रवीभूत भया तब द्रव करि परिणाम प्रगट किया। जब परिणाम प्रगट्या, तब गुण द्रव्य रूप परणया । गुण द्रव्य रूप परणया. तब गुण द्रव्य प्रगटे । तातें द्रवत्व गुण ते सब का प्रगटना है, ऐसे अनंतगुण को परिणमे है। सो द्रवत्व गुण ते द्रव्य द्रवे, तब तो गुण परजाय प्रगटे अरु गुण द्रवे. तब गुण १ ढले. बहे. सम्मुख हो, २ उस.
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