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वरते है; सत्ता अनंत नाही। गुण गुण के लक्षण प्रमाण करवे जोग्य प्रमेय पर्याय ते भये तातै प्रमेय–विलास कहाया ! अर गुण ही को गुणी कहिये, तब सत्ता गुणी भया, सत्ता के सूक्ष्म गुण भया, सत्ता का अगुरुलघुगुण भया। वस्तुत्व गुणी भया, वस्तुत्व का प्रमेय गुण वस्तुत्व में है। वस्तुत्व का अगुरुलघु, सूक्ष्म अस्तित्व, प्रदेशत्व वस्तुत्व में पाइये, ऐसे अनंत गुणं हैं | जिस गुण का भेद कहिये तब बिस' गुण में अनंत गुण का रूप सधे है, तातैं सब भेद जाने ते तत्त्व पावे है अरु अनंत सुख पावे है।
आगे तीसरे प्रश्न का समाधानएक-एक गुण में एक-एक लक्षण व्यापक है। पर्याय की अपेक्षा अनंत गुण व्यापक हैं। जो पर्याय की अपेक्षा सब में न व्यापे तो सब को नास होई। सूक्ष्म को पर्याय सब में न होय तो सब स्थूल होय. अगुरुलघु सब में न होय तो सब हलके भारी होई, प्रमेय सब में न व्यापे तो प्रमाण करवे जोग्य न रहे, ताः पर्याय का गुण सब गुण में है। मूल लक्षण एक-एक गुण का निज लक्षण पर्याय का धाम रूप एक है। ऐसा प्रमय का भेद है। पर्याय करि अनंत गुण व्यापक | प्रमेय मूलभूत वस्तु एक गुण जानो, ऐसा प्रमेय ‘वान' कहिए सरूप प्रमेय में रहे है सो प्रमेय वानप्रस्थ कहिए।
आगे वस्तुत्व का वानप्रस्थ कहिए है
सामान्यविशेष रूप वस्तु है, वस्तु का भाव वस्तुत्व है | वस्तु सामान्य-विशेष धरे ताको कहिए-अनन्त गुण सामान्यविशेष रूप है। ज्ञान सामान्य सो जानन मात्र स्वपरको जाने, १ उस
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