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अप्रमाण होते; तातैं प्रमेय गुण अपने प्रमाण करवे जोग्य रूप भया है। सत्तागुण को प्रमाण प्रमेय ने किया। काहे ते? सत्ता सासता लक्षण को लिये है सो सम्यक्ज्ञान ने प्रभाण किया, तब प्रमेय नाम पाया । कोई प्रश्न करे है
सत्ता अपना लक्षण प्रमाण करवे जोग्य आपा लिये है । यहां प्रमेय करि प्रमाण करवे जोग्य काहे को कहो । सब गुण अपने-अपने लक्षण कोरे अपनी अनंत महिमा लिये प्रमाण करवे जोग्य हैं, प्रमेय ते काहे कहो ?
ताको समाधान
एक-एक गुण सब आन'गुण की सापेक्ष लिये हैं एक - एक गुण करि सब गुण की सिद्धि है। चेतना गुण ने सब चेतना रूप किये। सूक्ष्मगुण ने सब सूक्ष्म किये, अगुरुलघु ने सब अगुरुलघु किये, प्रदेशत्व गुण ने सब प्रदेशी किये, तैसे प्रमेयगुण ने सब प्रमाण करिवे जोग्य किये। प्रमेयगुण ने विनके लक्षण को प्रमाण करिवे जोग्य के वास्ते विनके लक्षण के मांही प्रवेश कर अभेद रूप सत्ता अपनी करि दई है । तातैं सब गुण प्रमाण करिबे जोग्य भये । जो सब गुण अपने लक्षण को धरते प्रमेय विनके मांहि न होता, तो अप्रमाण जोग्य होते । तातैं अन्योन्य सापेक्ष सिद्धि है ।
उक्तं च
नाना स्वभावं संयुक्त, द्रव्यं ज्ञात्वा प्रमाणतः । तत्त्वसापेक्षसिद्धयर्थं स्यान्नयैर्मिश्रितं कुरु | 1911 इहां फेरि प्रश्न भया
प्रमेय की अभेद सत्ता सब गुण में कही, तो गुण में गुण नहीं 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः यह फाकी' सूत्र की झूठ होय, एक
१ अन्य दूसरे २ उनके ३ परस्पर ४ पंक्ति, लकीर
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