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नारी सुत काजि झूठ खरचि हजारों डारे, चाकरी न करे कहुं धरम के भाई की ।। साधरमी धनहीन देखि के करावे सेवा, अनादर राखे राति नहीं अधिकाई की। माया की मरोर तैं न धरम को भेद पावें, बिना विधि जाने रीति मिटे कैसे काई की । । ४८ ।।
साता सुखकारी यहै मोह की कुटिल नारी, ताको जानि प्यारी ताके मद को करतु है । धरम भुलावे अति करम लगावे भारी, ऐसी साता हेत लच्छी घर में धरतु है । यह लोक चिंता परलोक में कुगति करे, कहे मेरो यासों सब कारज सरतु है। धरम के हेत लाई धन की सुगति करे, धरम बढावे शिवतिय के चरतु है । ।४६ || बार-बार कहै कहा तू ही या विचारि बात, लछमी जगत में न थिर कहुं रही है। जाको करि मद अर फेरि क्यों करम बांधे, धरम के हेत लाये सुखदाई कहीं है ।। ऐसी दुखदायनि को कीजिये सहाय निज, यातैं और लाभ कहा ढूंढि देखि मही है। साधरमी दुख मेटि धरम के मग लाय सात खेत' चाहें सुख पावें जीव सही है ||५० | दस प्राण हू ते प्यारो धन है जगत मांहि,
महा हित होइ जहां धनको लगावे है।
१ के लिए, २ पानी के ऊपर जमने वाली कार्ड, मोह, ३ आचरण करता है. ४ जगत, पृथ्वी, ५ सात क्षेत्र: जिनपूजा, मन्दिर प्रतिष्ठा, तीर्थयात्रा, सत्पान्नों को दान देना, 'साधर्मियों को दान, दुःखी जीवों को दान, कुल-परिवार वालों को दान, ६ बोते हैं,
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