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आप चिद करम को आप सेवे ।। आप परिणाम करि आप को साधि है, आप आनंद को आप लेवें। आप तैं आप को आप थिर थापि है, आप अधिकार को धारि' टेवेर आप महिमा महा आप की आप में, आप ही आप को आप देवे ।।७६ ।। आप अधिकार जानि सार सरवगि' कहे, ध्यान में धारि मुनिराज ध्यावें। सकति परिपूरि- दुख दूरि हैं। जास ते सहज के भाव आनंद पावे।। अतुल निज बोध की बारिके धारणा, सहज चिदजोति में लौ लगावे । और करतूति का खेद को ना करे, आप के सहज घरि आप आवे ।।८०|| सकल संसार का रूप दुख भार है, ताहि तजि आप का रूप दरसे | मोह की गहलि ते पार निज को कह्या. त्यागि पर सहज आनंद बरसे।। आप का भाव दरसाव करि आप में, जोति को जानि भव्य परम हरसे। शुद्ध चिदरूप अनुभौ करे सासतो. परमपद पाय शिवथान परसे ||१|| सकल संसार पर मांहि आपा" धरे,
१ धारण कर. २ दृढ़ करे, ३ सर्वज्ञ, ४ शक्ति, ५ भरपूर, पूर्ण, ६ मदहोशी. गहल से, ७ प्रसन्न हो, परमात्म पद, ६ मुक्तिधाम. १० स्पर्श करे. ११ आपापन
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