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रचनाएँ-प्राप्त जानकारी के अनुसार पं० दीपचन्द कासलीवाल द्वारा रचित पन्द्रह रचनाएँ उपलब्ध होती हैं जो इस प्रकार हैं
१ आत्मावलोकन (गद्य) रचना-काल वि०सं० १७७४) २ चिविलास (गद्य) (फागुन वदि ५, वि०सं० १७७६) ३ अनुभवप्रकाश (गद्य) रचना-काल वि०सं० १७८-१) ४ परमात्मपुराण (गद्य) (अज्ञात) ५ सवैया-टीका (गद्य) (अज्ञात) ६ भावदीपिका (गद्य) (अज्ञात)
अनुभवानन्द डा. पन सं. ) (अज्ञात) ८ अनुभवविलास (पद संग्रह) (अज्ञात) ६ स्वरूपानन्द (पद्य) (माघ सुदि ५, वि०सं० १७६१) १० शानदर्पण (पद्य) (अज्ञात) । ११ गुणस्थानभेद (गद्य) (अज्ञात) १२ उपदेशसिद्धान्तरत्न (पद्य) (अज्ञात) १३ अध्यात्मपच्चीसी (पद्य) (अज्ञात) १४ आरती १५ विनती
इनमें से सात रचनाएँ गद्य में रचित हैं और शेष आठ रचनाएँ पद्य में हैं।
रचनाकाल- रचनाकार ने "उपदेश सिद्धान्त" में धर्मसंग्रहकार पं. मेधावी का प्रमाण दिया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विक्रम संवत् १७०० से १५०० के मध्य पं. दीपचन्द कासलीवाल का रचना-काल रहा होगा। अपने युग का यथार्थ चित्रण करते हुए समय की माँग को उन्होंने निम्नांकित शब्दों में व्यक्त किया है। उनके ही शब्दों में - "काल-दोष से सम्यग्ज्ञानी, वीतराग प्रवृत्तिन के धारक यथार्थ वक्तान का तो अभाव भया अर अवसर्पिणी काल के निमित्त ते जिनमत वि कुलिंग के धारक प्रचंड हैं क्रोध, मान, माया, लोमादिक कषाय जिनके अरु पंच इन्द्रियन के विषय में हैं आसक्त भाव जिनके, साक्षात् गृहीत मिथ्यात्व के पोसने तैं जिनमत के विर्षे वक्ता भये, जिनसूत्र के अर्थ अन्यथा करने लगे, ता करि भोले जीव तिनकी बताई प्रवृत्ति