SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभौ अखंड रस धाराधर जग्यो जहां, तहां दुख दावानल रंच न रहतु है। करमनिवास भववास घट भानवे को, परम प्रचंड पौन मुनिजन कहतु है। याको रस पिए फिरि काहू की इच्छा न होय, यह सुखदानी जग में महतु है। आनंद को धाम अभिराम यह संतन को, याही के धरैया पद सासतो लहतु है।।१२७ ।। आतम-गवेषी संत याही के धरैया जे हैं, आप में मगन करें आन न उपासना। विकलप जहां कोऊ नहीं भासतु है, याके रस भीने त्यागी सबै आन' वासना । चिदानंद देव के अनंत गुण जेते कहे, जिन की सकति सब ताहि माहि भासना। व्यय. उतपाद, ध्रुव, द्रव्य गुण-परजाय, महिमा अनंत एक अनुभौ विलासना।।१२८।। . दोहा गुण अनंतके रस सबै, अनुभौ रस के मांहि । यातें अनुमौ सारिखो, और दूसरो नाहिं । ।१२६ ।। सवैया जगतकी जेती विद्या भासी कर-रेखावत, कोटिक जुगांतर जो महा तप कीने हैं। ५ महत्त्वपूर्ण, महान, २ अन्य, भौतिक
SR No.090008
Book TitleAdhyatma Panch Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
PublisherAntargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages205
LanguageBraj
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy