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आप सुद्ध सत्ता की अवस्था जो स्वरूप करे, सो ही करतार देव कहे भगवान है। परिणाम जीव ही को करम करावे याते, परिणति क्रिया जाको जाने सो ही जान' है। करता करम क्रिया निहचे विचार देखे, . वस्तु में न मिन्न होइ है परनाना है: कहे 'दीपचन्द' ज्ञाता ज्ञान में विचारे सो ही, अनुभौ अखंड लहि पावे सुखथान है।।१०।। गुण को निधान अमलान है अखंडरूप, तिहुँलोक भूप चिदानन्द सो दरसि है। जामें एक सत्तारूप भेद त्रिधा फैलि रह्यो, जाके अवलोके निज आनन्द वरसि है। द्रव्य ही ते नित्य परजाय ते अनित्य महा, ऐसे भेद धरिके अभेदता परसि है। कहिये कहां लों जाकी महिमा अपार 'दीप' देव चिदरूप की सुभावता सरसि है।।१।। सहज आनन्दकन्द देव चिदानन्द जाको, देखि उर मांहि गुणधारी जो अनन्त है। जाके अवलोके यो अनादि को विभाव मिटे, होय परमातमा जो देव भगवन्त है। सिवगामी जन जाको तिहुंकाल साधि-साधि, वाही को स्वरूप चाहे जेते' जगि सन्त हैं। कहे 'दीप' देखि जो अखंड पद प्रभु को सो, जातै जग मांहि होय परम महन्त है।।२।।
१ ज्ञान. २ प्रमाण, ३ उसी को. ४ जितने. ५ जगत में,
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