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साक्षात् करता है। वह सामान्य सत् निर्विकल्प सेवा करता है। दर्शन में ज्ञान गुण भी दर्श जाता है, इसलिये केवलदर्शन में केवलज्ञान का अवलोकन होता है तथा प्रत्यक्ष ज्ञानी की मुनिसंज्ञा कही जाती है | दर्शन अनन्त गुणों को प्रत्यक्ष देखता है
वास्तव में निर्विकल्प स्वरूप ही वस्तु का सर्वस्व है । यह एक नियम है कि सामान्य भाव के बिना विशेष नहीं होता है। अतः वस्तु की सिद्धि दर्शन से है । ब्रह्म में भी सर्वदर्शित्व शक्ति दर्शन के कारण है। वस्तुतः दर्शन दर्शन को देखता है, निर्विकल्प सत् का अवलोकन करता है। सामान्य- विशेष रूप सब पदार्थों को निर्विकल्प सत्ता अवलोकन, दर्शन करता है; ज्ञान में निर्विकल्प सत्ता रूप अवलोकन नहीं होता । यथार्थ में परमात्मा राजा को देखने से ही सब सिद्धि है । बिना देखे क्रिया नहीं होती। दर्शन-परिणत नारी का सुहाग भी दर्शनपति के मिलन पर ही होता है। जब तक वह अपने पति से दूर रहती है, तब तक निर्विकल्प रस की प्राप्ति न होने से वह व्याकुल बनी रहती है। अतएव अनन्त सर्वदर्शित्व शक्ति के नाम अपने पति से भेंट होती ही यह निराकुल हो जाती है। वास्तव में यह महिमा दर्शन की है। परिणति के अनुसार दर्शन है। जब परिणति दर्शन को धारण करती है, तब आप आप में सुखी होता है। परिणति को दर्शन के बिना विश्राम नहीं मिलता है और दर्शन को भी परिणति के बिना सुख तथा शुद्धता प्राप्त नहीं होती। वास्तव में दर्शन के वेदन करने पर ही परिणति शुद्ध होती है। दर्शन ज्ञेय को देखता है- यह उपचार कथन है। यथार्थ में दर्शन ज्ञेय के सम्मुख ही नहीं होता है।
परमात्मा राजा का अनन्त वैभव है । उस वैभव में अनन्त गुण हैं और उन गुणों में अनन्त शक्ति तथा अनन्त पर्याय हैं। एक-एक गुण की पर्याय में अनन्त नृत्य हैं। प्रत्येक नृत्य में अनन्त घाट, घाट में अनन्त कला, कला में अनन्त रूप, रूप में अनन्त सत्ता, सत्ता में अनन्त भाव, भाव में अनन्त रस, रस में अनन्त प्रभाव प्रभाव में अनन्त वैभव, वैभव में अनन्त ऋद्धि, ऋद्धि में अतीन्द्रिय, अनाकुल, अनुपम, अखण्ड, अविनाशी, स्वाधीन अनन्त है। इस सब को जानने वाला ज्ञान है। जैसे किसी के घर में अपार सम्पत्ति गड़ी हुई हो लेकिन उसे उसका पता
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