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________________ तथा उनके प्रति कोई सम्मान नहीं करते, पर्याप्त साधारण बैंगनी प्राण उत्पन्न नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्तियों में जब ev प्रेषित की जाती है तो उनकी प्रतिक्रिया या तो बहुत ही कम होती है या होती ही नहीं है। इसके परिणामस्वरूप उनके उपचार की गति धीमी या बिल्कुल ही नहीं होती है। यदि रोगी को साधारण बैंगनी ऊर्जा से ऊर्जित करके तब ev से ऊर्जित किया जाए, तब हम आश्चर्यजनक दिव्य उपचार के लिए उचित परिस्थितियों के समान सदृश्यता उत्पन्न कर सकते हैं। इस तकनीक को केवल अनुभवी उन्नतशील प्राणशक्ति उपचारक ही करें, न कि प्रारम्भिक उपचारक। उपचारक को अपने आन्तरिक मार्गदर्शन के प्रति अधिक संवेदनशील होना पड़ेगा, तभी वह इस तकनीक का उपयोग कर सकता है। इस उपचार को करने से पहले दिव्य आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करना अत्यावश्यक है। यह तकनीक अति शक्तिशाली है और निम्न चक्रों पर इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। (क) 3-- इससे उच्च रक्तचाप हो सकता है। (ख) 1. 2 तथा p -- यह 1 पर करने से उसको अधिक सक्रिय करके, रोगी को बेचैन कर सकता है। इसके द्वसरा कुण्डलिनी ऊर्जा को गलत ढंग से जाग्रत करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे शारीरिक और मनावैज्ञानिक समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। 2 पर करने से उसको अत्यधिक सक्रिय करके. यौनेच्छा अत्यधिक बढ़ जाती है जिससे गम्भीर पति-पत्नी सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। (ग) 5-- इससे ऊर्जा शरीर पर प्राण का घनापन छा सकता है। (घ) 7 या छाती के क्षेत्र पर - इससे 7 अत्यधिक सक्रिय हो सकता है और उस पर घनापन हो सकता है, जिससे हृदय की समस्यायें हो सकती हैं। उपचार में v:ev की मात्रा का अनुपात ४ : १ है। जैसे-जैसे शक्तिशाली होता जाता है, वैसे-वैसे यह ३ : १ तक बढ़ाया जा ५.५२५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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