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अध्याय
जिन्सैंग – Ginseng
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(१) पदार्थ
जिन्सँग जीनस (Genus) प्रकार की औषधि के पौधे की जड़ है। जीनस अन्य सभी समुदायों (groups ) के पौधों की संरचना की प्रकृति (structural characteristics) से भिन्न वह समुदाय है जिसमें अलग तरह की समान संरचना की प्रकृति पायी जाती है, किन्तु ये भी अनेक प्रकार के होते हैं। ये पौधा पूर्वी एशिया में चीन व कोरिया एवम् उत्तरी अमेरिका में पाया जाता है । (ज्ञातव्य हो कि यह अब भारत में बाजार में उपलब्ध है, यद्यपि यह महंगा है। इस सम्बन्ध में बड़े कैमिस्टों (chemists) से सम्पर्क किया जा सकता है)
(२) श्री चोआ कोक सुई द्वारा किए गए प्रयोग
श्री चोआ कोक सुई ने वायवी शरीर पर चोन तथा कोरिया की लाल जिन्सेंग का प्रयोग किया था। जिन व्यक्तियों पर इस का प्रयोग किया गया, उनकी आयु १४ से ५५ वर्ष की थी और एक दफा में उनको डेढ़ से लेकर पांच ग्राम तक जिन्सैंग के पाउडर की मात्रा दी गयी थी ।
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दिव्य दर्शन से देखा गया कि जिन्सँग पाउडर का प्रभाव लगभग तुरन्त ही प्रारम्भ हो गया । आन्तरिक और स्वास्थ्य मण्डलों से प्रकाश की अनेक चमक आते हुए दृष्टिगत हुईं। आंतरिक आभा मण्डल पांच इंच से बढ़कर लगभग दस इंच हो गया, स्वास्थ्या मण्डल अधिक चमकीला होकर लगभग दो फुट से लगभग तीन फुट हो गया तथा बाह्य आभा मण्डल का भी विस्तार हो गया। हल्का भूरा सा पदार्थ का निष्कासन हुआ | चक्र अधिक चमकीले, अधिक बड़े होकर, अधिक सक्रिय हो गए। मुख्य चक्रों का आकार साढ़े तीन इंच से बढ़कर लगभग पांच इंच हो गया। उपनाभि चक्रों (जो कृत्रिम ऊर्जा बनाते हैं) का आकार एक इंच व्यास से बढ़कर लगभग तीन इंच हो गया। कृत्रिम ऊर्जा घनी हो गयी । यद्यपि जिन व्यक्तियों पर प्रयोग किया, उनकी प्राण ऊर्जा बहुत अधिक थी, किन्तु जिन्सँग के प्रयोग से उनको आराम मिला और वे बेचैन नहीं हुए । यह उसी प्रकार हुआ, जिस प्रकार ध्यान - चिन्तन में होता है । यद्यपि 1- चिन्तन के समय बहुत ऊर्जा पैदा होती है, किन्तु ध्यानकर्ता आराम व शान्ति से
ध्यान