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________________ (फ) समस्त ऊर्जित अंगों, चक्रों व समस्त शरीर में प्रेषित ऊर्जा को स्थिरीकरण करिए एवम् सील करिए । (ब) उपचार के अन्त में, सभी रत्नों को हटा दीजिए और उनको स्वच्छ करने तथा ऊर्जन करने की प्रक्रिया को बन्द करने के लिए निदेशित करके, नमक के घोल में डाल दीजिए। उनको सोखी हुई समस्त गंदी और रोगग्रस्त ऊर्जा को नमक के घोल में निकालने के लिए निदेशित करिए । (१४) रत्नों द्वारा उपचार में मुख्य सावधानियाँ (क) शिशुओं, बच्चों, बहुत कमजोर और बड़े बूढ़े रोगियों का रत्नों द्वारा ऊर्जन न करिए। इनका ऊर्जन हाथ चक्र से करिए । (ख) बगैर जांच किये बिना रोगी की उपचार ग्राह्यता निश्चित किये हुए उपचार न करें। उपचार के बीच-बीच में जांच करते रहें । (ग) रत्नों को सटीक, सरल निर्देश दें । (घ) ऊर्जन करने का समय न कम हो, न अधिक हो । (ङ) बीच-बीच में रोगग्रस्त ऊर्जा को रत्न से झटकते रहें। आंख के चक्र और आंख का रत्न द्वारा ऊर्जन न करें । (च) (छ) उपचार से पूर्व और बाद में आप व रोगी दोनों प्रार्थना करे। (31) रत्नों का स्वच्छीकरण, चार्जिंग और पवित्रीकरण यथोचित समय पर करें। (ञ) प्राणशक्ति उपचार विशेष सम्बन्धी अन्य सावधानियां बरतें । (१५) रत्न / रत्नों द्वारा दूरस्थ प्राणशक्ति उपचार Crystal Distant Pranic Healing आपने अध्याय ७ में वर्णित दूरस्थ प्राणशक्ति उपचार में दक्षता प्राप्त कर ली होगी। इसके उपरान्त ही रत्न द्वारा दूरस्थ उपचार करें। जब रोगी कोई वाहन चला रहा हो, अथवा कोई भारी संयंत्र को हैण्डिल कर रहा हो अथवा कोई ५.४९७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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