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________________ भी आवश्यक है कि आप उस स्थान में चन्दन की धूप या अगरबत्तियां जलाकर, स्थान को स्वच्छ करते रहें। एक्सट्रैक्टर रत्न को दो विधियों से उपयोग में लानाTwo ways of using the extractor प्रथम विधि- रोगी को लिटाकर इसके प्रभावित भाग अथवा चक्र के ऊपर रत्न को रखिए, तदुपरान्त उसको उचित निर्देश दीजिए। यदि मनो/ मनोवैज्ञानिक उपचार भी कर रहे हों, तो नकारात्मक ऊर्जा, नकारात्मक सोच के आकारों और नकारात्मक परजीवियों को निर्देश में शामिल कर लीजिए। कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् रोगग्रस्त ऊर्जा आदि को निस्तारण इकाई में झटका देकर फैंक दीजिए। रत्न को पहले निर्देशित क्रियाओं को बन्द करने के लिए तीन दफा निर्देशित कीजिए। रत्न की अच्छी प्रकार से सफाई कीजिए। द्वितीय विधि- प्रभावित भाग या चक्र के पास रत्न को पकड़िए। उसके द्वारा धड़ी की दिशा में घुमाते हुए कुछ सैकिन्डों तक प्राण ऊर्जा प्रेषित कीजिए। फिर घड़ी की उल्टी दिशा में उसको घुमाते हुए ऊर्जा आदि को बलपूर्वक निकालने आदि के उक्त वर्णित वचनों द्वारा तीन बार निर्देशित करिए। रोगग्रस्त ऊर्जा आदि को निस्तारण इकाई में फैंक दीजिए। जब तक प्रभावित भाग या चक्र काफी स्वच्छ न हो जाए, तब तक इस प्रक्रिया को दोहराते रहिए। तत्पश्चात् रत्न को उक्त निर्देशित क्रियाओं को बन्द करने के लिए तीन दफा निर्देशित कीजिए। रत्न की अच्दी प्रकार सफाई कीजिए। उक्त दोनों विधियां चित्र ५.२४ में दर्शायी गई है। ५४१०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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