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________________ (७) भाग पर कीजिए । तत्पश्चात् इन पाचो भागों पर इसकी सात या इससे अधिक बार दोहराइए । उसके बाद छठे भाव, अर्थात पेड़ और दो पर ही प्रक्रिया सात या उससे अधिक बार करिए। इस तकनीक को "छह भागों वाली चक्र को स्वच्छीकरण करने की तकनीक ( six-section chakral cleansing technique)" कहते हैं। गम्भीर रोगों में कुछ चक्र बहुत ही अधिक गंदे होते हैं। इस विधि से आप शीघ्रतापूर्वक अच्छी प्रकार सफाई कर सकते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है । कितनी बार C करना है, इसमें स्व-विवेक, अन्तर्ज्ञान (Intution) एवम् अनुभव के आधार पर इसमें परिवर्तन किया जा सकता है। लेसर रत्न से ऊर्जित करना - Energisation with the use of a Laser Crystal (क) चित्र ५.१७ के अनुसार CA तथा LC लीजिए । (ख) LC का नोंकदार सिरा चक्र या प्रभावित भाग की ओर करिए । (ग) प्रारम्भिक ऊर्जन पद्धति के अनुसार ऊर्जन करिए, अर्थात् अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करते हुए CA के द्वारा प्राण ऊर्जा ग्रहण करते हुए, LC के द्वारा प्राण ऊर्जा को चक्र की ओर प्रेषित करिए । ऊर्जा को वाञ्छित निर्देश दीजिए एवम् यथासम्भव दृश्यीकृत कीजिए । बीच-बीच में LC द्वारा ग्रहण की हुई रोगग्रस्त ऊर्जा को नमक के धोल में झटककर नष्ट होने के लिए फेंकते रहिए । (घ) यह कैसे जाना जाए कि चक्र या प्रभावित भाग काफी ऊर्जित हो गया है या नहीं ? जब आप हाथ से ऊर्जित कर रहे होते हैं, तो प्राण ऊर्जा के प्रवाह के रुक जाने अथवा उसके वापस टकराकर लौटकर आने को आसानी से महसूस कर सकते हैं, किन्तु जब LC द्वारा ऊर्जित कर रहे होते हैं, तो कम संवेदनशीलता होती है। इसके लिए आपको संवेदन की चैतन्यता बढ़ानी होगी, या आप बीच-बीच में नियमित तौर पर हाथ १.४८०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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