________________
"हे आध्यात्मिक गुरुओ, उपचारक देवदूतो, प्रकाश के देवो और सभी बड़े व्यक्तियो, मैं आपको दिव्य आशीर्वाद के लिए पुनः धन्यवाद देता हूँ। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ ।'
"हे सूर्य, वायु एवम् पृथ्वी की प्रकृति-आत्माओ और फरिश्तो, मैं आपको दिव्य आशीर्वाद के लिए पुनः धन्यवाद देता हूँ। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।" भाग-६- पवित्रीकरण के अन्त में
रत्न/ रत्नों की ओर देखते हुए उसे/उन्हें तीन बार मौखिक या मानसिक रूप से निर्देशित करें :
"अब और ऊर्जा का ग्रहण का और सोखन बन्द करिए। सदनुसार हो।" ।
फिर रत्न/रत्नों की ऊर्जा का स्थिरीकरण करिए, B से सील करिए और वायवी डोर को वायवी विधि से काटिए। (घ) पवित्रीकृत रत्नों के विषय में सावधानियाँ और ज्ञातव्य बातें(१) सिल्क ऊर्जा की कुचालक होती है, अतएव जब रत्न का उपयोग न
किया जा रहा हो, तब उसे सिल्क के कपड़े में लपेट कर रखिए। (२) चूंकि उपचार के दौरान एवम् उपचारक के हाथों द्वारा रत्न संक्रमित
होता रहता है, अतएव उसको नियमित तौर पर स्वच्छ करते रहना चाहिए। प्रत्येक उपचार के बाद नमक के घोल तथा ev से स्वच्छ
करना चाहिए। (३) प्राण-शक्ति उपचार में रत्न की ऊर्जा घट जाती है अथवा समाप्त हो
जाती है, अतएव उसका दो-तीन रोगियों के उपचार के पश्चात् पुनः
चार्ज करना जरूरी है, यदि उसका पवित्रीकरण नहीं हुआ है तो। (४) यदि लम्बे समय तक रत्न रखा हुआ हो, तब भी प्रत्येक दशा में (अर्थात्
___ पवित्रीकृत किये जाने की दशा में भी) उसको पुनः चार्ज करना जरूरी