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________________ "जब आपका उपचार में उपयोग हो रहा हो, तो स्वयमेव ही उपचारक गुरुओं, उपचारक फरिश्तों, प्रकाश के देवों और महान व्यक्तियों से प्राण ऊर्जा ग्रहण कर लिया कीजिये। तदनुसार हो, तदनुसार हो, तदनुसार हो।' लेसर रत्न के केस में निम्न निदेश दीजिए : "उपचारों के दौरान, जब भी आप ऊर्जा का प्रेषण कर रहे हों, तो स्वयमेव ही उपचारक गुरुओं, उपचारक फरिश्तों, प्रकाश के देवों और महान व्यक्तियों से प्राण ऊर्जा ग्रहण कर लिया कीजिए। तदनुसार हो, तदनुसार हो, तदनुसार हो।" (क) रत्नों को उचित तथा सटीक निर्देश देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। (ख) यदि आप केवल वातावरण से ऊर्जा ग्रहण करने के लिए कहते हैं, तो वह वातावरण में उपस्थित व्यक्तियों/पशुओं/ पौधों आदि से भी प्राण ऊर्जा ग्रहण कर सकता है। इससे आपको तथा उन सभी को स्वास्थ्य की समस्यायें हो सकती हैं। (ग) निर्देश दत समय, किसी विशिष्ट गुरु का नाम मत लीजिए, जब तक आपने उन गुरु से आज्ञा न प्राप्त कर ली हो। गुरु का नाम लेना नीति-शास्त्र के विरुद्ध है। रत्न की स्वच्छता बनाये रखना महत्वपूर्ण एवम् आवश्यक है। यदि वह स्वच्छ रहेगा, तो उचित रूप से काम करेगा एवम् उपचार में सकारात्मक सहायक होगा। इसके अतिरिक्त स्वच्छ होने पर स्वयमेव चार्ज करता रहेगा। भाग-५- कृतज्ञता ज्ञापन करना पवित्रीकृत करने के पश्चात, धन्यवाद देना महत्वूपर्ण चरण 61 रत्न/ रत्नों की ओर देखते हुए मौखिक या मानसिक रूप से तीन-तीन बार उच्चारण करते जाइए : "हे सर्वशक्तिमान प्रभु, मैं आपको आशीर्वाद के लिए पुनः धन्यवाद देता हूँ। धन्यवाद सहित और पूर्ण विश्वास के साथ।" ५.४५८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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