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कि हृदय, उच्च रक्तचाप अथवा कैंसर के रोगी अपने शरीर पर बेहतर
होगा कि रत्न न धारण करें एवम् अपने कमरे में न रखें। (३) रत्नों को कब धारण न करें-- When not to wear crystals
रत्नों को धारण करने से पार्श्व प्रभाव पड़ता है। इसलिए आपको जानना चाहिए कि रत्न को कब धारण न करें। (क) निम्न चक्रों के अधिक सक्रिय हो जाने के कारण उच्च रक्तचाप के
रोगी अधिक देर तक न पहिने अथवा बड़े रत्नों के समीप न रहें, अन्यथा 1 तथा 3 के कारण रक्तचाप और अधिक बढ़ जायेगा। यदि उसे उच्च रक्तचाप होने की प्रवृत्ति है, तब भी वह रत्नों को न
पहने। (ख) हृदय के रोगी एवम् अतिश्वेतरक्तता (leukemia) के रोगी रत्न न पहिने
अथवा बड़े रत्नों के समीप लम्बे समय तक न रहें, अन्यथा उनकी दशा
बिगड़ सकती है। (ग) ट्यूमर अथवा कैंसर के रोगी रत्नों को न पहिनें। 1, 3 और 6 पहले
से ही अधिक सक्रिय रहते हैं। रत्न पहनने से यह और अधिक सक्रिय हो जायेंगे. जिसके फलस्वरूप कैंसर की कोशिकाएं तेजी से फैल जायेंगी।
एक यकृत के कैंसर के रोगी का प्राणशक्ति उपचार कई सत्रों में हुआ। इसके परिणामस्वरूप कैंसर काफी कम हो गया था। शीघ्रता से ठीक होने की भावना से रोगी ने एक बड़ा एमीथिस्ट (amethyst) रत्न (ये रत्न बैंगनी रंग का होता है) पहन लिया। एक या दो सप्ताह बाद जब दूसरा एक्सरे (X-ray) परीक्षण हुआ तो डॉक्टर यह देखकर हैरान
रह गया कि कैंसर की कोशिकायें और भी तेज गति से फैल गयी हैं। (घ) जो मानसिक अथवा मनोवैज्ञानिक रूप से असंतुलित हैं, उनको रत्न
नहीं पहनना चाहिए, अन्यथा यह असंतुलन और अधिक बढ़ जायेगा।
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