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________________ (५ "प्रतिदिन और हर प्रकार से, मैं अच्छा हो रहा हूँ, और अच्छा हो रहा हूँ, और अच्छा हो रहा हूँ।" वायवी शरीर के कम्पन की गति बढ़ाना-- Increasing the Rate of Vibration वायवी शरीर को कम्पन की गति बढ़ाकर शीघ्र ही ऊर्जित किया जा सकता है। (क) GS (ख) वायवी शरीर को निदेश दीजिए कि वह अपने कम्पन की गति को पचास से सौ प्रतिशत तक बढ़ा दे। निदेशात्मक उपचार की सीमाएं- Limitations of Instrcutive Healing यद्यपि कई केशों में मात्र निदेशातक चार दाग ही आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं, किन्तु गम्भीर केसों में यह अकेला काफी नहीं होता। C तथा E करना होता है। गम्भीर केसों में प्राणशक्ति उपचार किये बगैर निदेशात्मक उपचार उसी प्रकार अर्थहीन होगा जिस प्रकार किसी को बगैर धन दिये हुए उससे किसी मंहगी वस्तु को क्रय करने के लिए कहना। इस प्रकार के निदेशात्मक उपचारक हैं जिन्हें प्राणशक्ति उपचार का ज्ञान नहीं है, किन्तु उनका वायवी अथवा ऊर्जा शरीर शक्तिशाली होता है। जब उपचारक दृश्यीकरण करके अथवा मौखिक रूप से या मन के द्वारा रोगी का उपचार करता है, तो उसके बगैर इरादे के ही वह प्राणशक्ति रोगी को प्रेषित करता है। किन्तु शीघ्र उपचार के लिए, स्वास्थ्य आभामण्डल की स्वास्थ्य किरणों को सुलझाना, वायवी शरीर के रोगग्रस्त ऊर्जा को निष्कासित करना, प्रभावित चक्रों और प्रभावित अंगों से रोगग्रस्त ऊर्जा को निष्कासित करना और यथोचित मात्रा में प्राणशक्ति ऊर्जा को प्रदान करना अभी भी आवश्यक है। निदेशात्मक उपचार किस श्रेणी का है निदेशात्मक उपचार प्राणशक्ति उपचार का ही एक अंग है। कुछ केसों में यह उपचार की गति बढ़ाने के लिए प्राणशक्ति के दौरान या उसके बाद किया जाता है। (७) , ५.४०५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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