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________________ (१५) विभ्रम और बेचैनी- Hallucination and Restlessness विभ्रम (hallucination) का खुलासा अध्याय २३ के क्रम संख्या ४ (झ) में वर्णित है। यदि कोई रोगी निम्न आध्यात्मिक स्तर का है, तो वह इसी प्रकार के निम्न श्रेणी की चीजों (जिनको देखने अथवा जिनकी आवाजें सुनने का उसको विभ्रम होता है) को आकर्षित करेगा और "भद्दे व गंदे दृश्य तथा ध्वनियों' को देखेगा तथा सुनेगा। इनके कुछ चक्रों के फिल्टर में छेद होते हैं। इन रोगियों के 6, 9, bh और कान के चक्र प्रभावित होते हैं। इनके आँख के चक्र भी प्रभावित हो सकते हैं। यदि रोगी को बेचैनी होती है, तो उसके 1 की जाली में दरारें होती हैं और उनमें नकारात्मक परजीवी बसे होते हैं। (क) Gs (ख) C (6, 9, 10, 11, bh, j, आंख के चक्र) Ev IE ev. यदि दृष्टि विभ्रम हो तो, अथवा c (6, 9, 10, 11, bh, j, कान के चक्र) ev /Eev. यदि श्रवण विभ्रम हो तो यदि बेचैनी हो, तो c 1 evi Eev - ऊर्जन के समय कुछ अधिक इच्छाशक्ति करें। निम्न चक्र प्रायः ev के प्रति अग्राह्य होते (घ) उपचार को सप्ताह में कम से कम तीन बार दोहरायें, ताकि बीमारी फिर से न आ जाये, विशेष कर जब कि यह रोग दीर्घकालीन हो तो। (१६) उदासी/ मायूसी-Depression उपक्रम (१) सामान्य इसके भौतिक अथवा मानसिक /मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं- शरद ऋतु में वायु में कम ओजस्वी ऊर्जा होने के कारण कुछ वृद्ध लोग उदासी/मायूसी महसूस करते हैं। यह भौतिक कारण का उदाहरण है। जिस व्यक्ति की एक लम्बे समय तक तनावपूर्ण स्थिति रहती है, उस पर मायूसी छा जाती है। कोई मानसिक आघात के फलस्वरूप अपना आत्म विश्वास खो सकता है, जिसके फलस्वरूप गम्भीर स्व-संकीर्णता हो जाती है तथा जिसको
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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