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For behold, the kingdom of Nirvana is within you. उपक्रम (३) आत्मा शरीर, भावनाओं और विचारों से भिन्न है और उसकी
प्रकृति अपरिवर्तनीय, अविनाशकारी और नित्य है। Soul is different from the body, emotions and thoughts and
that its nature is immutable, indestructible and and eternal. उपक्रम (४) बुद्ध अथवा दैवीय ज्ञान की प्रकृति अथवा स्वयं की दैवीयता
प्रत्येक में बसती है, चाहे वह किसी भी लालच, क्रोध, मूर्खता से ढकी हो अथवा स्वयं के क्रियाओं अथवा प्रतिकार द्वारा दबा दी गयी हो और आगे या पीछे जब इस प्रकार के ये प्रतिवस्तुएं हटा दी जाती हैं, तो वह (बुद्ध प्रकृति अथवा स्वयं की दैवीयता) पुनः प्रकाशित हो जाती है। Buddha-nature (or the divine self) exists in everyone, no matter how deeply it may be coverd over by greed, anger or foolishness, or buried by his/her own deeds and retribution, and when all defilements are removed, sooner
or later, it will reappear. (ख) अब तक पाठक यह महसूस कर चुका होगा कि वह स्वयं उसका शरीर
नहीं है, न भावना है, न विचार है और इस सब बयान का तात्पर्य यह है कि वह स्वयं अपने शरीर में एक स्व-दैवीय है जो स्वयं (छिपा हुआ) ईश्वर है। आप स्व-दैवीय के अन्दर विराजित स्वयं को इस दैवीय शक्ति द्वारा शारीरिक और मानसिक/मनो/मनोवैज्ञानिक रोगों से ठीक कर सकते हैं। यह निम्न स्वीकारता (Affirmation) को प्रतिदिन कई बार,
जब तक आवश्यक हो, कर सकते हैं :उपक्रम (१) मैं न तो शरीर हूं, न भावना हूं, न विचार हूं |
मैं एक दैवीय व्यक्ति हूँ। मैं वह हूं जो मैं हूं। मैं स्वच्छ सम्पूर्ण हूं और उपचारित हूं। धन्यवाद सहित, तदनुसार हो I am not the body, nor the emotion, nor the thought ! I am a divine being !