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________________ की उच्च चक्रों को आवश्यक्ता होती है और उनके द्वारा इरा परावर्तित ऊर्जा की खपत होती है। (क) GS (२) (ख) c' (समस्त सिर, 11, 10, 9, bh, j, 8, 8) G ~ v (ग) E (11, 10, 9, 8)GV'- Ev के समय, चक्रों को बड़ा होता हुआ दृश्यीकृत करें। (घ) E (bh, j, 8 }GV' C 7/ E 7b GV (च) CBIE of w (छ) C 4/E R (ज) C' (2, 16~OIE R उक्त क्रम (६) (ठ) के अनुसार अध्याय ३० के क्रम ११ में वर्णित तथा चित्र ५.२३ में दर्शाये क्रम (1) तथा (3) के अनुसार वितरणशील झाड़-बुहार सामने से 11 से 2 तक ऊपर से नीचे की ओर लगभग दस बार करें, फिर पीछे की ओर से 11 से 1 तक लगभग दस बार करें। इस विधि से मूल व यौन ऊर्जा ऊपर के चक्रों को मिलती है। ऊपर के चक्रों को 1 व 2 की ऊर्जा प्राप्त होती है, जो उनके सुचारुपूर्वक कार्य करने के लिए आवश्यक होती है। इसके बाद 1 व 2 की पुनः जांच करें । यदि आप पाएं कि वे आंशिक रूप से खाली हैं, तो E(1, 2) R करें। (ट) अगले कुछ सालों तक, उपचार सप्ताह में तीन बार करें। इस उपचार के साथ, विशेष तौर पर शिक्षा प्रदान करके, उपचार में और सुधार लायें। वृद्ध व्यक्तियों में इस उपचार को सप्ताह में एक या दो बार करके वृद्धत्व की कमजोरी का उपचार किया जा सकता है, अथवा वृद्धत्व की कमजोरी को रोका जा सकता है। (ञ) ५.३१८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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