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इसमें रिह्यूमैटोइड संधिवात की तरह ही वायवी दशा होती है, किन्तु ज्यादा गम्भीर हालत होती है। वायवी तौर पर सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है और उस पर खालीपन होता है। 1 पर बहुत ज्यादा खालीपन होता है। 4, 5, 6 भी प्रभावित होते हैं। 6 पर काफी धनापन होता है तथा गंदा होता है। । और प्लीहा वायवी तौर पर गंदे होते हैं। 9, 7 और 8 भी प्रभावित हो जाते हैं। 8 लिम्फैटिक तंत्र को नियंत्रित तथा ऊर्जित करते हैं। 8 तथा 7 थायमस को नियंत्रित तथा ऊर्जित करते हैं।
यदि 6b से गंदी धनी ऊर्जा K को जाती है तो K प्रभावित हो जाते हैं। जांच करने पर K पर घनापन मालुम पड़ता है। दिव्य दृष्टि से देखने पर रक्त काफी गंदा होता है।
लोगों में दर्द होता है और इस दशा के बाद साधारणतः पूरे शरीर में त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं। रोगी की ऊर्जा पर बहुत ज्यादा खोखलापन (depletion) होता है। यदि उपचारक तुलनात्मक तौर पर अधिक शक्तिशाली नहीं है, तो रोगी प्राणशक्ति के शीघ्र खपत हो जाने के कारण. उसके रोगी) द्वारा उपचारक से प्राणशक्ति खींच लेने के कारण उपचारक के आंशिक रूप से खालीपन (depletion) हो सकता है। (क) GS (२) (ख) C" 6. C LIE B GBOIC' ( 6, L) -
इस क्रिया से समस्त शरीर की सफाई होती है। रोगी को पसीना आ सकता
(ग) CLu ELu (Lub के माध्यम से) GOR- इसका रक्त पर सफाई तथा
ताकत पहुंचने का प्रभाव पड़ता है। E 0 के समय, अपनी उंगलियां रोगी
के सिर से दूर इंगित करिए। (घ) c (पैरों तथा बांहों पर तथा a, e, H, h, ks)G0 - यदि
सफाई ठीक हो जाये तो दर्द कम हो जायेगा तथा चकत्ते हल्के पड़ जायेंगे। (ड) E (प्रभावित जोड़ों पर) GBO - कई उपचारों बाद या कई सप्ताहों के बाद
जब दशा सुधर जाये, तब E (जोड़ों पर) GV'
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