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(छ)
(ग) c' ( 2, AP )G~OIE BOv (घ) C' - 1 इसका E न करें, अन्यथा इससे 1 अधिक सक्रिय होकर
यौन रोग के कीटाणुओं का विकास बढ़ जायेगा। (ङ) C' (बांहे तथा पैरों पर, a, e, . h, k, S)/ E(a e. H, h, k, s)v
-- ES द्वारा 1 बगैर अधिक सक्रिय हुए ऊर्जित हो जायेगा, जिससे रक्त के सफेद कोशिकाओं का उत्पान बढ़ेगा। इस प्रक्रिया को दिन में एक बार से अधिक न करें। H तथा में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण
न करें। (च) C Lu / E Lu (Lub के माध्यम से) Go - इस प्रक्रिया से रक्त तथा पूरे
शरीर की सफाई द्वारा उपचार गति को बढ़ावा मिलेगा। E0 के समय अपनी उंगलियों को रोगी के सिर से दूर इंगित करें। 6 आंशिक रूप से प्रभावित होता हैं, इसलिये C" 6, CLIE 6
GBV (ज) 5 भूरा सा होता है। C. EEE Gv... सावधानी से। जीहा कीटाणुओं
को हटाने में सहायता करता है।। c. 7/E (थायमस ग्रंथि-7b के माध्यम से) (कम G) V- यह थायमस को सक्रिय करने तथा शक्ति प्रदान करने के लिए है और रीढ़ की हड्डी, पसलियां तथा छाती की हड्डी में अस्थि-मज्जा (Bone Marrow) को सक्रिय
करने के लिए है। (ञ) C 81 E Gv- 8 लिम्फैटिक तंत्र को नियंत्रित करता है। (ट) C (11, 10, 9, bh) IE GV' (ठ) उपचार को सप्ताह में तीन बार करिये। गर्भवती महिलायें- सामान्य- Pregnant women - General गर्भवती महिलाओं का उपचार मृदुता से करना चाहिए। इसका मतलब है कि दोनों C तथा E मृदुता से करना चाहिए। सामान्य तौर पर, रंगीन प्राणों के स्थान पर
w अधिक सुरक्षित है। इन महिलाओं पर हरा या नारंगी प्राण का उपयोग न करें, विशेष तौर पर 4 तथा 2 पर। इसका प्रभाव काफी नष्टकारक हो सकता है। पैरों में भी हरा या नारंगी प्राण भेजने में कुछ खतरा हो सकता है. क्योंकि उसका एक अंश गर्भस्थ शिशु तक पहुंच जाता है, विशेष तौर पर जब उपचारक काफी शक्तिशाली
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