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________________ (19) प्रतिरक्षात्मक तंत्र को मजबूत करना - Enhancing the Immunity and Defense System यह अस्थि तंत्र तथा लिम्फेटिक तंत्र को उत्तेजित व शक्तिशाली बनाकर प्राप्त किया जा सकता है T GS (२) C' (AP)/ E GBV C' Lu/ELu (Lub के माध्यम से) GOv- E के समय उंगलियों की दिशा को सिर की दिशा से दूर रखिए । रक्त शुद्धि से समस्त शरीर मय (AP) काफी शुद्ध हो जायेगा ! (क) (ख) (ग) (घ) (ङ) - C (a, e, H,h, k, S) / E (Rया V) - यादें रोगी रतिज रोग से पीड़ित है तो केवल EV – यदि V का प्रयोग किया है, तो उस दिन इस चरण को न दोहरायें। H तथा S में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें । C1/E (W या R), यदि रोगी बुखार या रतिज रोग से पीड़ित है तो E न करें, मात्र C 1 ही करें। (ज) (झ) (च) C' (5,4) / E 4V - यह शरीर की ऊर्जा बढ़ाने तथा परोक्ष रूप से E 5 करने के लिए है। (ञ) (ट) (ग) और (घ) की क्रिया Bone Marrow में सफेद रक्त कण के अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है। यदि प्लीहा दर्दकारक है. तो 6 को सामान्य करने हेतु (जो साधारणतः गलत ढंग से कार्य कर रहा होता हैं) तथा L को शक्ति पहुंचाने व रक्त को शुद्ध करने हेतु, C" 6 तथा CL, फिर E6 GBV E 5 GV/C 5 E से बचें। ५.२१९ - C8/EGBV -- यह लिम्फेटिक तंत्र को उत्तेजित करने के लिए है । C' 7/E7b V – यह थायमस ग्रंथि को शक्ति प्रदान करने एवम् उत्तेजित करने के लिए है। इससे यही क्रिया रीढ़ की हड्डी, पसलियां तथा छाती की हड्डी में स्थित अस्थि मज्जा पर हो जायेगी ।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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