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का शक्तिदायक प्रभाव होता है और गहरे लाल रंग की ऊर्जा उपचारित अंग को कमजोर कर देती है। हल्का या पेस्टिल (Pastel) रंग की ऊर्जा का प्रयोग
करना सुरक्षित होता है। रंगों का शेड (shade) चित्र ५.०४ में दर्शाया गया है। (ख) हल्के रंग की ऊर्जा की तीव्रता (potency) उसको सफेद रंग की ऊर्जा के
साथ मिलाकर कम की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर, इसके लिए ऊर्जा के केन्द्रीय भाग (core) में प्रकाशवान सफेद (luminous white) प्राण ऊर्जा तथा परिधि (periphery) में हल्के लाल रंग की ऊर्जा को शक्ति प्रदान करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस प्रकार से ऊर्जा का उपयोग श्रेयस्कर है क्योंकि राफेद प्राण समन्वय करने वाली (harmonious) ऊर्जा होती है। यह समन्वय इस आशय से है कि वह उपचार में आवश्यकतानुसार दूसरे रंग की ऊर्जा प्रस्तुत करती है और उपचारित अंगों से अतिरिक्त ऊर्जा को शरीर के अन्य भागों में पुनः वितरित कर देती है। सामान्यतया हल्के रंग के स्थान पर ७० प्रतिशत सफेद तथा परिधि में ३० प्रतिशत हल्के रंग की ऊर्जा अधिक अच्छा, तीव्र और सुरक्षित प्रभाव करती है। यहां सफेद ऊर्जा से तात्पर्य एक ट्यूब लाइट की जो रोशनी होती है, उतनी प्रकाशवान सफेद ऊर्जा से है। बहुत कम अवसर पर तीव्र प्रभावों के लिए हल्के रंग की ऊर्जा पूर्ण रूप से प्रयोग में आती है।
सफेद रंग की ऊर्जा तीन प्रकार की विधियों द्वारा इस्तेमाल की जा सकती है।
केन्द्र में प्रकाशवान सफेद और रंगीन ऊर्जा परिधि में (२) केन्द्र में रंगीन ऊर्जा और परिधि में सफेद ऊर्जा (३) हल्के रंग को सफेद ऊर्जा से मिश्रित फरक
विधि (१) के लिए सफेद प्रकाशवान ऊर्जा को प्रेक्षित होते हुए दृश्यीकृत करें, फिर थोड़ी सी रंगीन ऊर्जा को इस प्रकार परिधि पर प्रेक्षित करें कि परिधि पर वह सफेद ऊर्जा के सम्मिश्रण से बहुत हल्की पेस्टिल रंग की हो जाये। विधि (4) और (२) एक सी है क्योंकि दिव्यदर्शियों ने देखा है कि दोनों प्रकार के नमूने एक के बाद एक, लगातार और जल्दी-जल्दी आपस में बदलते रहते हैं। विधि (३) अधिक गूढ़ ऊर्जा है और भली प्रकार सुरक्षित है।
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