SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 616
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) द्वितीय चरण प्रथम चरण में दक्षता प्राप्त हो जाने के पश्चात् अब आप उन रोगियों का इलाज करें जिनका साक्षात्कार करके पहले इलाज कर चुके हैं। रोगी की एक फोटो प्राप्त करके उपचार करते समय अपने सामने रखें। यदि फोटो उपलब्ध न हो सके, तो रोगी की शक्ल सूरत आपको अच्छी तरह याद होनी चाहिए। रोगी से टेलीफोन द्वारा अथवा अन्य किसी प्रकार से उपचार की तारीख व समय निश्चित करें, ताकि उस समय-एकदम ठीक समय पर रोगी उपचार ग्रहणशील अवस्था में अपने स्थान पर स्थित रहे और आप भी उसी निश्चित ठीक समय पर दूरस्थ उपचार प्रारम्भ कर दें। यदि हो सके तो उपचार के पश्चात टेलीफोन या अन्य सम्पर्क से रोगी के हालचाल पूँछे तथा अपने निष्कर्षानुसार परिणामों की तुलना करें। आवश्यकतानुसार पुनः सफाई/ ऊर्जन करें। धीरे-धीरे इस प्रकार की दूरस्थ प्राणशक्ति चिकित्सा के अभ्यास से अपनी दक्षता बढ़ायें। अब उपचार निम्न दो में से किसी एक विधि द्वारा कर सकते हैं। विधि नं १दूरस्थ उपचार में वे सभी प्रकार के नियम का पालन व क्रिया में करें जो सामने बैठे रोगी के समक्ष की जाती है। PB भी करें। दूषित रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ को भी नष्ट करते हुए निस्तारण करना है जैसे सामान्य उपचार में करते हैं। तथा उपचार के अन्त में वायवी डोर को काटना न भूलें। साथ ही अपने बाहों व हाथों की वायवी प्राणशक्ति ऊर्जा द्वारा सफाई करें एवम् नमक के पानी से भी धोयें। आवश्यक्तानुसार कीटनाशक साबुन से हाथों को भी धोयें। यह महत्वपूर्ण एवम् आवश्यक है। विधि नं २ (क) रोगी को अपने सामने बैठे हुए दृश्यीकृत करें। (ख) अपनी आंखें बंद करके रोगी के ऊपर एक चमकदार गेंद को दृश्यीकृत करें। इसके बाद एक प्रकाश की धार। को दृश्यीकृत करें जो सिर को साफ करती हुई नीचे बह रही है और पूरे शरीर को साफ कर रही है। पूरे रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ को जमा करके उसे ठीक तरह नष्ट कर दें या फैंक दें। प्रभावित या पीड़ित अंगों के भूरे पदार्थ को कम होता हुआ और रंग हल्का होता हुआ महसूस करें उसे बाहर आने और तैरते हुए शरीर से दूर चले जाने की इच्छा करें। ५.१४४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy