SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय -- प्राण ऊर्जा द्वारा शारीरिक रोगों का उपचार स्व-प्राणशक्ति उपचार SELF PRANIC HEALING यह उपचार दो प्रकार से किया जा सकता है। एक तो स्वयं का स्वयं द्वारा उपचार करके और दूसरे, स्वयं को एक भिन्न उपचारक के रूप में प्रत्यारोपण करके स्वयं के रोग का उपचार करना, अर्थात स्वयं को दो रूपों में- रोगी और उपचारक के रूप में भिन्न-भिन्न मानकर अथवा दृश्यीकृत करके उपचार करना। इसकी कई विधियाँ हैं। किन्तु दो एलभूत निम्... कामाई करना और ऊर्जन करने का उपयोग करना सभी में लागू होता है, अन्य कोई नियम नहीं है। (१) विधि नं १-- अपने आप द्वारा (स्वयं से) (क) PB करें (ख) T (AP) तथा । (सम्बन्धित चक्र) इस विधि में अध्याय ४, ५ व ६ में दी गई समग्र नियम, विधियां आदि गर्भित हैं। (२) विधि नं २- छिद्रों द्वारा श्वसन की पद्धति- Skin Breathing (क) PB करें (ख) प्राणशक्ति या सफेद प्रकाश को अंदर की ओर खींचे या AP के छिद्रों से इसे अन्दर जाते हुए महसूस करें। (ग) कुछ क्षणों तक अपनी सांस रोके रहें और यह महसूस करें कि रोगग्रस्त भूरा पदार्थ धीरे-धीरे सफेद हो रहा है या धीरे-धीरे चमकदार हो रहा
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy