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(घ) कुल
शरीर के भेद को कारणभूत नोकर्म वर्गणाओं के भेद को कुल कहते हैं। पृथ्वीकायिक जीव
- २२ लाख कोटि जलकायिक जीव
- ७ लाख कोटि अग्निकायिक जीव
३ लाख कोटि वायुकायिक जीव
७ लाख कोटि द्वीन्द्रिय जीव
७ लाख कोटि त्रीन्द्रिय जीव
८ लाख कोटि चतुरिन्द्रिय
६ लाख कोटि वनस्पतिकायिक जीव
२८ लाख कोटि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में जलचरजीव
१२- लाख कोटि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में पक्षीजीव
१२ लाख कोटि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में पशु जीव
१० लाख कोटि पंचेन्द्रिय छाती के सहारे चलने वाले जीव - ६ लाख कोटि
२६ लाख कोटि नारकी
२५ लाख कोटि मनुष्य
१२ लाख कोटि
योग - १६७१ लाख कोटि (१ कोड़ाकोड़ी तथा सत्तानवे लाख और पचास हजार कोटि) (नोट- तत्वार्थसूत्र में मनुष्य के १४ लाख कोटि कुल बताये हैं, इसके अनुसार कुल
कुलों की संख्या १ कोड़ा कोड़ी तथा निन्यानवे लाख पचास हजार कोटि होती
देव
(ड.) अवगाहना
सबसे जघन्य अवगाहना ऋजुगति के द्वारा उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म निगोदिया लब्य- पर्याप्तक जीव की उत्पत्ति के तीसरे समय होती है जो कि घनांगुल के