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सिद्धजीवों का सुख- चक्रवर्ती, भोगभूमिज, धरणेन्द्र, देवेन्द्र और अहमिन्द्रों का सुख क्रमश: एक दूसरे से अनन्त गुणा है। इन सबके त्रिकालवर्ती सुख से सिद्धों का एक क्षण का भी सुख अनन्त गुणा है। सिद्धों के गुण- अष्ट कर्मों के नाश होने से सिद्धों के निम्न गुण प्रकट होते हैंज्ञानावरणी कर्म (घातिया) के नाश होने से अनन्त ज्ञान, दर्शनावरणी कर्म (घातिया) के नाश होने से अनन्त दर्शन, वेदनीय कर्म (अघातिया) के नाश होने से अव्याबाधत्व. मोहनीय कर्म (घातिया) के नाश होने से हासिक सम्यान एवं अनन्त सुख आयु कर्म (अघातिया) के नाश होने से अवगाहनत्व, नाम कर्म (अघातिया) के नाश होने से सूक्ष्मत्व, गोत्र कर्म (अघातिया) के नाश होने से अगुरुलधुत्व और अन्तराय कर्म (घातिया) के नाश होने से अनन्त वीर्य।
___ सिद्धों के समस्त गुणों को कहने में जब गणधर, बृहस्पति, सरस्वती भी असमर्थ हैं. तब मुझ जैसे बुद्धिहीन व अल्पज्ञ की सामर्थ्य ही क्या है। मेरा सिद्ध परमेष्ठियों को मन-वचन-कायपूर्वक, उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक, उत्कृष्ट विनय पूर्वक, उत्कृष्ट श्रद्धापूर्वक, उत्कृष्ट अनन्तानन्त बार, त्रिकालवर्ती नमोऽस्तु होवे |
स्वाध्याय बिना ज्ञान नहीं स्वाध्याय बिन होत नहीं, निज-पर भेद विज्ञान। जैसे मुनि पद के बिना, ना हो केवल ज्ञान ।।२६।।
-क्षु. सन्मतिसागर जी विरचित 'मुक्तिपथ की ओर' से उद्धृत ।
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