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________________ (च) (छ) (ज) यह ज्ञातव्य हो कि जांच प्रक्रिया जितनी ज्यादा दक्ष होगी, उपचार उतना ही प्रभावशाली होगा। बगैर समस्या का निदान करके, उपचार करना कठिन होता है इसलिए उपचारक को इसकी दक्षता का अभ्यास निरन्तर करते रहना चाहिए। गाड़ी चलाने की तरह इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए नियमित अभ्यास और समय की जरूरत होती है। इस विषय पर इस पुस्तक में जो भी लिखा है उसमें आपका विश्वास हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है किन्तु, आपसे यही आशा या अपेक्षा है कि जो भी नियम और पद्धतियां बतायी गई है, उनको खुले और खोजी दिमाग से अपनी पूरी रुचि के साथ उनकी योग्यता की जांच करें। का अध्यकहीं ऐसा भी हो सकता है कि प्रारम्भ में पढ़ने पर यह भलीभांति समझ में नहीं आए। इसलिए यह अच्छा रहेगा कि आप प्राणशक्ति उपचार में इस अध्याय को पढ़ने के बाद अथवा संभव हो तो प्रारम्भिक प्राणशक्ति उपचार का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, कुछ अभ्यास कर अनुभव प्राप्त कर लें। जैसे इसके अध्याय ५ में माध्यमिक श्रेणी अध्याय ६ में स्व प्राण चिकित्सा. अध्याया ७ मे दूरस्थ प्राण चिकित्सा, अध्याय ८ से २२ तक उन्नत रंगीन प्राण चिकित्सा. अध्याय २५ में निदेशात्मक अध्याय २६ में प्रार्थना द्वारा, अध्याय २७ में प्राणिक लेसर, अध्याय २८ से ३१ तक रत्नों द्वारा प्राणशक्ति, अध्याय ३२ में दिव्य उपचारों का वर्णन है, जिनमें उत्तरोत्तर अधिक ज्ञान, अभ्यास और अनुभव की आवश्यक्ता पड़ेगी। इनमें कई प्रसंग पहले अनुभव के आधार पर ही ठीक प्रकार समझ में आ सकेंगे और इन्हीं अनुभवों के आधार पर ज्ञान भी विकसित होगा। ५.८४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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