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________________ अध्याय -४ प्राण-ऊर्जा द्वारा शारीरिक रोगों का उपचार प्रारम्भिक प्राणशक्ति उपचार BASIC PRANIC HEALING (१) सामान्य प्राण ऊर्जा के उपयोग के सिद्धान्त अध्याय १ में दिये हैं, जो सभी प्राणशक्ति । उपचार में लागू होते हैं। इसके दो बुनियादी नियम हैं: रोगी के जीवद्रव्य शरीर के रोगग्रस्त व पीड़ित अंग व चक्र से रोगग्रस्त जीव पदार्थ को साफ करना तथा उस अंग व चक्र को ओजस्वी ऊर्जा द्वारा ऊर्जित करना। यह भौतिक शरीर द्वारा सांस निकालते हुए दूषित पदार्थ या कार्बन डाईऑक्साइड आदि के निष्कासन एवम् सांस लेते हुए ताजी हवा व आक्सीजन से ऊर्जन के समानान्तर हैं। ऊर्जन करने से पहले सफाई करने के कारण (१) प्राणशक्ति को सोखने की प्रक्रिया को सरल करना (२) उपचार में कम समय लगना व उपचार के लिए कम प्राण शक्ति की आवश्यकता (३) संभावित उग्र प्रतिक्रियाओं को कम करना अथवा नगण्य करना एवम् (४) बारीक जीव द्रव्य नाड़ियों या शिरोबिन्दुओं को होने वाले नुकसान के खतरे से कम करना है। कुछ सामान्य केसों में मात्र सफाई द्वारा ही उपचार के लिए काफी होती है। (२) हाथ एवं उंगलियों के ऊर्जा चक्र हाथ के चक्र जिनका जिक्र भाग ४ में किया जा चुका है, लगभग एक इंच व्यास के आकार के होते हैं। कुछ उपचारकों का हाथ वक्र दो इंच या इससे अधिक भी होता है। इनका उपचार में विशेष योगदान होता है। इनके द्वारा ही वातावरण से स्वस्थ ऊर्जा तथा रोगी की रोगग्रस्त ऊर्जा सोखी जाती है एवम् स्वस्थ ऊर्जा को रोगी की ओर प्रेषण किया जाता है। हाथों के दोनों ही चक्र इसके योग्य होते हैं। लेकिन दाहिने हाथ से काम करने वाले व्यक्ति को बांए हाथ से सोखना और दाहिने
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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