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मस्तिष्क के तरंगों को प्रणाली की सबसे धोमी गति को डेल्टा (Delta) कहते हैं। इसमें स्वप्न रहित निद्रा होती है, जो उपरोक्त दोनों दशाओं से गुजरने के बाद , हम प्राप्त कर सकते हैं। सामान्य तौर पर लोग डेल्टा (Delta) दशा में निद्रा में मग्न रहते हैं, किन्तु योगी और संत यह स्वीकार करते हैं कि इस अति गहन trance (अति विभोरतायुक्त, अति उल्लासमयी) के समान अभौतिक दशा में चौकन्ने रहना सम्भव है। यह वह दशा है जो योगी प्राप्त कर लेते हैं जो कि चेतनापूर्वक योग निद्रा की जागरुकता है। इसमें भौतिक मस्तिष्क का सोचना बिल्कुल ही बन्द हो जाता है, किन्तु ब्रह्माण्ड की ऊर्जाओं में इतना अधिक केन्द्रित हो जाता है कि दोनों के तरंगों के आकार और कम्पन के पहलू का एकीकरण (attunementor oneness) हो जाता है।
उक्त दशा में बहुत से वृद्ध होने सम्बन्धी रोगों का नाश हो जाता है। इसी कारण, हम ऐसे संतों को देखते हैं जो लगभग शतायु होकर भी युवा समान दिखाई पड़ते हैं। इस दशा में पिनीयल व पीयूष ग्रंथियां वृद्धत्व को समाप्त करने वाले (antiageing) हारमोनों को शरीर को प्रदान करते हैं, जिससे युवा होने की क्रिया को और गति मिलती है।
यह गहन ध्यान में प्रयाण करने की दशा है। इसमें लाभ यह होता है कि हम Linear-time related thoughts पर विजय पाते हैं और अपने vibrational harmonies को विकसित करके. ईश्वर से तारतम्यता कर लेते हैं, चित्त संतुलित हो जाता है; अत्यधिक ऐसी शक्ति प्राप्त हो जाती है जो 'पुराने' प्रकार की ऊर्जाओं से यह दशा कभी प्राप्त नहीं होती।
"संक्षेप में कहें कि कदाचित 'समाधि की दशा प्राप्त हो जाती होगी।