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________________ अध्याय- १७ 'मृत' घोषित होने के बाद, कभी-कभी 'पुनर्जीवित" हो जाना कभी-कभी यह सुना जाता है कि अमुक व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात जब उसका दाह संस्कार किया जाने वाला था, तो वह पुनर्जीवित हो गया। ऐसा सुना जाता है। कि परम पूज्य आचार्य श्री १०८ आदि सागर जी के शरीर से स्पर्शित वायु द्वारा एक मृत व्यक्ति जो श्मसान दाह संस्कार हेतु ले जाया गया था, पुनर्जीवित हो उठा। विचारणीय है कि ऐसा क्यों कर सम्भव है? मेरी तुच्छ बुद्धि में आया है कि ऐसा भौतिक शरीर (औदारिक शरीर ) के मृतप्रायः होने की दशा होने पर कदाचित कुछ समय तक वायवी ऊर्जा शरीर (अथवा तैजस शरीर) के जीवित बने रहने का कारण यह सम्भव हो सकता है। भाग ५ में वर्णित ऊर्जा शरीर के उपचार के प्रसंग में यह बताया गया है कि इस उपचार के तुरन्त अथवा कुछ समय बाद भौतिक शरीर पर प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार अथवा भौतिक शरीर के उपचार के तुरन्त था कुछ समय बाद ऊर्जा शरीर पर प्रभाव पड़ता है। शायद इसी प्रकार भौतिक शरीर पर की प्रतिभासित मृत्यु के तुरन्त या कुछ समय बाद वायवी (ऊर्जा) शरीर की मृत्यु होती होगी । शास्त्रानुसार किसी जीव की मृत्यु के तुरन्त पश्चात एक समय दो समय अथवा अधिकतम तीन समय के समय के अन्तर्गत विग्रहप्राति में रहकर, जीव दूसरी गति या उसी गति में जन्म ले लेता है और उसका फिर अपने पिछले जन्म के शरीर में नये जन्म से दुबारा लौटकर आना सम्भव नहीं है । क्या पाठकगण एवम् विद्वज्जन इस पर विचार, चिन्तन एवं खोज करेंगे? ४. 52
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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