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________________ . पहले तीन रूप ठोस, द्रव और गैस हैं। द्रव्य एक आयनीकृत गैस (ionized gas) है यानी इस गैस में धनात्मक और ऋणात्मक आवेश के अणु होते हैं। विज्ञान की भाषा में इन्हें प्रोटीन्स (protons) और इलैक्ट्रोन्स (electrons) कह सकते हैं। जीव द्रव्य का अर्थ एक जीवित शक्ति है जो अदृश्य सूक्ष्म पदार्थ या वायवी पदार्थ का बना होता है। किर्लियन (Kirlian) फोटोग्राफी उच्च आवृत्ति (high frequency) तकनीक के माध्यम से वैज्ञानिक छोटे जीव द्रव्य वस्तुओं जैसे जीव द्रव्य उंगलियों, पत्तियों का अध्ययन करने और उनके चित्र लेने में सफल हुए हैं। इसी जीव द्रव्य शरीर द्वारा प्राणशक्ति या ओजस्वी ऊर्जा ग्रहण कर पूरे भौतिक शरीर में फैलायी या संचारित की जाती है। (नोट:- यहां 'द्रव्य' शब्द का आशय भाग १, अध्याय २ के अन्तर्गत वर्णित छ: द्रव्य, से नहीं है) सामान्य भौतिक शरीर में जिस तरह रक्त के संचार के लिए नाड़ियां या रक्त नलिकाएं होती हैं, उसी प्रकार जीव द्रव्य शरीर में भी न दिखाई देने वाली बारीक शिरोबिन्दु या नाड़ियां होती हैं जिनके द्वारा प्राणशक्ति और जीव द्रव्य पदार्थ पूरे जीव द्रव्य शरीर में संचारित होता है। कई बड़ी और हजारों छोटी जीव द्रव्य नाड़ियां जीव द्रव्य शरीर में होती हैं। योग विद्या में इन्हें बड़ी और छोटी नाड़ी कहते हैं। इन नाड़ियों द्वारा प्राणशक्ति का संचार होता है जो पूरे शरीर को पोषण और शक्ति प्रदान करता है। जैन शास्त्रों में पांच प्रकार के शरीर का वर्णन आया है। औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण। मनुष्यों और तिर्यंचों के औदारिक शरीर होता है। देव और नारकियों के वैक्रियक शरीर होता है। आहारक शरीर मात्र ऋद्धिधारी प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनिराजों के होता है, जो एक हाथ का सफेद पुतला होता है, जिससे आहारक समुद्घात होता है। इसका वर्णन भाग १, अध्याय १ के क्रम (६) (झ) (१४) में दिया है। तैजस और कर्माण शरीर सभी सांसारिक जीवों के होता हैं। औदारिक शरीर उपरोक्त वर्णन में भौतिक अथवा दृश्य शरीर को कह सकते हैं। वैक्रियक शरीर मनुष्य, तिर्यंचों के नहीं होता, यद्यपि चतुर्थ काल के कुछ ऋद्धिधारी मुनियों को विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हो सकती है। कार्माण शरीर इतना सूक्ष्म है कि वह भौतिक विज्ञान अथवा इन्द्रियों द्वारा गम्य नहीं है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मात्र एक तैजस शरीर बचा जिसको उपरोक्त वर्णित जीव द्रव्य अथवा ऊर्जा शरीर कहा जा सकता है। तेजस । का ४.८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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