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भाग - ४ प्राण ऊर्जा (प्राणशक्ति) विज्ञान
अध्याय १ – भूमिका- जैन शास्त्रादि में ऊर्जा का उल्लेख (क) “मंगलमन्त्र णमोकारः एक अनुचिन्तन" शास्त्र जी से उद्धृत णमोकार मन्त्र- यह नमस्कार मन्त्र है, इसमें समस्त पाप, मल और दुष्कर्मों को भस्म करने की शक्ति है। बात यह है कि णमोकार मन्त्र में उच्चरित ध्वनियों से आत्मा में धन और ऋणात्मक दोनों प्रकार की विद्युत शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कर्म कलंक भस्म हो जाता है। (पृष्ठ Ix)
णमोकार मन्त्र का शुद्ध आगमसम्मत पाठ निम्न हैणमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व-साहूणं ।।
श्वेताम्बर आम्नाय में णमो के स्थान पर नमो शब्द है। इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बात यह है कि भाषा के परिवर्तन से शब्दों की शक्ति में कमी आती है, जिससे मन्त्रशास्त्र के रूप और मण्डल में विकृति हो जाती है और साधक को फल--प्राप्ति नहीं हो पाती है। अतः णमो पाठ ही समीचीन है, इस पाठ के उच्चारण, मनन और चिन्तन में आत्मा की शक्ति अधिक लगती है और फल प्राप्ति शीघ्र होती है। मन्त्रोच्चारण से जिस प्राण-विद्युत का संचार किया जाता है, वह 'णमो' के घर्षण से ही उत्पन्न किया जा सकता है। अतएव शुद्ध पाठ ही काम में लेना चाहिए। (पृष्ठ २५-२६)
इस महामन्त्र के गुण अचिन्त्य हैं। इसमें इस प्रकार की विद्युत शक्ति वर्तमान. है जिससे इसके उच्चारण मात्र से पाप और अशुभ का विध्वंस हो जाता है। (पृष्ठ ३५)
इस मन्त्र के निरन्तर उच्चारण, स्मरण और चिन्तन से आत्मा में एक प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे आज की भाषा में विद्युत् कह सकते हैं, इस शक्ति द्वारा आत्मा का शोधन कार्य तो किया ही जा सकता है, साथ ही इससे अन्य आश्चर्यजनक कार्य भी सम्पन्न किये जा सकते हैं। (पृष्ठ ५१)