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२४ घंटे में कम से कम तीन बार कीजिए। यह एक्यूप्रेशर के उपचार की प्राथमिक पद्धति है।
इसके अतिरिक्त चेतना का प्रवाह- जीवनशक्ति का प्रवाह दाँए हाथ से बाहर निकलता है, उसे नियंत्रण में रखने वाला बिन्दु दाएँ हाथ की कोहनी और कलाई के मध्य में एक इंच के गोलाकार में स्थित है। यहां पर इसी प्रकार दो मिनट तक दबाव देने से वृद्धावस्था और उसके कारण होने वाले रोग रुकते हैं, थकान कम लगती है एवम् दीर्घकाल तक यौवन को सुरक्षित रखा जा सकता है। ४०-४५ वर्ष के बाद प्रत्येक स्त्री-पुरुष को यह उपचार अनुशंसनीय है।
अध्याय-६
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भोजन एवम् पाचन आहार के तीन उद्देश्य शरीर के दृष्टिकोण से हैं: (१) शुद्ध रक्त उत्पन्न करना (२) शरीर में ऊष्मा-शक्ति उत्पन्न करना और (३) स्वाद प्राप्त करना । स्वाद छह प्रकार के हैं: (१) मधुर (मीठा) (२) खारा (३) खट्टा (४) तीखा (५) कसैला और (६) कडुआ।
अनुभव से मालुम होता है कि हम अपने आहार में अन्तिम दो रस कम करते जा रहे हैं। फलतः हमारी पाचन-क्रिया मंद पड़ती है, रक्त की संरचना में परिवर्तन होता है और हम अनेक रोगों के शिकार हो जाते हैं। कसैला व कड़वा रस यदि पर्याप्त मात्रा में लिया जाए, तो यह मधुर रस के दुष्प्रभाव को रोकता है, रक्त शुद्ध करता है, पाचन शक्ति बढ़ाता है और शरीर में सही अग्नि प्रदीप्त होती है। इन दोनों रसों का समावेश दैनिक आहार में अवश्य करना चाहिए। इसीलिए गांधी जी प्रतिदिन कड़वी नीम के पत्तों की चटनी खाने का आग्रह करते थे।
यदि हम शरीर के लिए उपयोगी पाई जाने वाली वस्तुओं का ही सेवन करें और उन्हें अच्छी तरह चबाकर खाएँ तो आहार की मात्रा घट जाएगी, पाचन में सुधार होगा और मल त्याग सरलतापूर्वक होगा। अच्छी पाचन शक्ति और अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें
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