________________
अध्याय- ४
मुद्रायें
मुद्रायें द्वारा शरीर में स्थित "पंच महाभूतों" को नियंत्रण में रखा जा सकता है। कहा जाता है कि शरीर पांच महाभूतों से बना है जो कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश हैं। ये विभिन्न उंगलियों में दर्शाए जाते हैं (देखिए चित्र ३.०१ ) |
सूर्य अथवा अग्नि
पवन अथवा वायु
आकाश अथवा अवकाश
( १ ) अंगूठा
(२) तर्जनी ( अंगूठे के पास वाली अंगुली )
(३) मध्यमा (बीच वाली बड़ी अंगुली )
(१) अनामिका (तीसरी अंगुली, अथवा अंगूठी वाली अंगुली ) - पृथ्वी (१) कनिष्ठिका (छोटी अंगुली)
जल
-
नीचे बताए अनुसार भिन्न-भिन्न उंगलियों को एकत्रित करने से भिन्न-भिन्न मुद्रायें बनती हैं। इन मुद्राओं से हम पंच महाभूतों का संतुलन कर अनेक रोगों को मिटा सकते हैं। ये मुद्रायें किसी भी तरह से सोते, बैठने या खड़े-खड़े की जा सकती हैं, परन्तु पद्मासन या सुखासन में इन्हें बैठकर करने से ज्यादा अच्छा परिणाम निकलता है। दस मिनट से प्रारम्भ करें और फिर तीस से पैंतालीस मिनट तक ये मुद्रायें करें। मुद्राएं दोनों हाथों से एक साथ करनी चाहिए। ये समस्त मुद्राएं चित्र ३.०२ में दर्शायी गयी हैं। ये मुद्राएं प्राणायाम करते समय भी की जा सकती हैं।
(१) ध्यान मुद्रा
तर्जनी उंगली से बगैर दबाव दिये अंगूठे का स्पर्श करें।
लाभ-- मस्तिष्क की शक्ति की वृद्धि, स्मरण शक्ति की वृद्धि, अनिद्रा व तनाव का दूर होना ।
(२) वायु मुद्रा
तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल में शुक्र पर्वत पर रखें और चित्र में दर्शाए अनुसार उसे अंगूठे से दबाकर रखें।
३.२०