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| विवरण/ | किन्नर | किम्पुरूष । महोरग | गन्धर्व । यक्ष राक्षस भूत
पिशाच प्रकार | च्यन्तर देव
जगत्प्रतर :- [संख्यात x (३०० योजन)] सम्बन्धी जिन भवनों का प्रमाण विशेष वर्णन भ रपुर और लावाल ने तीन प्रकार के स्थान व्यंतर देवों के माने गये हैं। इन
व्यन्तरों में से किन्हीं के भवन हैं, किन्हीं के भवन और भवनपुर दोनों हैं एवं किन्हीं के तीनों ही स्थान होते हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी में भवन द्वीप-समुद्रों के ऊपर भवनपुर होते हैं
और तालाबों, पर्वत एवं वृक्षों के आश्रित आवास होते हैं। ये असंख्यात द्वीप- समुद्रों में स्थित हैं। जिन भवनों में १००-१०- प्रमाण जिन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये व्यन्तर देव क्रीडा प्रिय होने के कारण मध्य लोक में यत्र-तत्र शन्य स्थान, वक्षों की कोटर, श्मसान भूमि आदि में भी विचरण करते रहते हैं। कदाचित. क्वचित किसी से पूर्व जन्म का वैर विरोध होने से उसे कष्ट दिया करते हैं, किसी पर प्रसन्न होकर उसकी सहायता भी करते हैं। जब सम्यकदर्शन को ग्रहण कर लेते हैं तब पापभीरु बनकर धर्म कार्यों में ही रूचि लेते हैं, ऐसा समझना चाहिए।
इन सभी व्यन्तर देवों में पीत लेश्या का जघन्य अंश रहता है।
(६) ज्योतिर्लोक
चन्द्र (इन्द्र) | सूर्य (प्रतीन्द्र) |
विवरण/ | प्रकार
ग्रह
।
नक्षत्र
तारा
कुल संख्या जगत्प्रतर,
११x
प्रतरांगुल
जगत्प्रतर जगत्प्रतर
७x(जगत्प्रतर | ४०८७८२९५८ {(संख्यात (संख्यात जगत्प्रतर (संख्यात । ६८४३७५x
प्रतरांगुल)x प्रतरांगुल)x | (संख्यात । प्रतरांगुल)x ! जगत्प्रतर: (४३८६२७३६०००० (४३८६२७३६०० प्रतरांगुल)x | (१०६७३१८४०० । (संख्यात 000००७७३३२४८) | 000000०७७३३ | (५४८६५६२००० | 0000000१६३३ | प्रतरांगुल)x २४८) 1000000०६६६६ ३१२) (२६७६००००
0000000४७
२)
एक
एक
२८
संख्या प्रतिचन्द्र परिवार तथा नाम
बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल, शनि, काल.
कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षा,
६६६७५ कोड़ा-कोडी _ - नाम अनुपलब्ध हैं
१.२४