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________________ ६. बृहद्रांत्र - Large Intestine यह लगभग पांच फुट लम्बा होता है। क्षुद्रांत्र में जिस आहार का पाचन और शोषण नहीं हो पाता, वह lleocolic Valve के द्वारा इसमें आता है। यह पहले ऊर्ध्वगामी कोलन (ascending colon), फिर अनुप्रस्थ कोलन ( traverse colon), फिर अधोगामी कोलन (descending colon) होकर sigmoid (सिगमौइड) नामक हिस्से में होता है। Sigmoid के शेष भाग को मलाशय कहते हैं। इसके बाद लगभग पांच इंच लम्बे वाले मार्ग को गुदा मार्ग (rectum), फिर गुदा (anus) कहते हैं। बृहदांत्र में न तो भोजन का पाचन होता है और न अवशोषण होता है। अपचित टुकड़े मुख्यतः सैलूलोज (cellulose) से बने होते हैं। बृहदांत्र में अनेक जीवाणु होते हैं, जो अपचित टुकड़ों से प्रतिक्रिया (react) करके गैस बनाते हैं। कुछ विषैले पदार्थो का निर्माण होता है, जिनमें से कुछ रुधिर में होकर यकृत (liver) में आ जाते हैं। बृहदांत्र में मुख्यतः जल का अवशोषण होता है। इसके निम्न कार्य हैं : (क) पानी, नमक और ग्लूकोज़ का अवशोषण (ख) इसके आन्तरिक सतह (Inner coat) में विद्यमान ग्रंथियों द्वारा म्यूकिन {mucin) का स्त्रवण (ग) Cellulose का निर्माण अपचित पदार्थ अन्ततः मल बनकर गुदा द्वारा बाहर निकल जाते हैं। मल में काफी तादाद में बैक्टीरिया (अधिकतर मृत), आंतों से उतरा हुआ epithelium, नाइट्रोजनित पदार्थ की कुछ मात्रा ( मुख्यतः mucin ), नमक (मुख्यत: Calcium, phosphaste ). थोड़ा सा लोहा, सैलूलोज़ (Cellulose), अन्य अपचित भोजन तथा पानी होते हैं। आँत्रपुच्छ (Appendix) छोटी व बड़ी ऑत के Caecum नामक स्थान में लगभग ४ इंच लम्बे नलीयुक्त हिस्से को कहते हैं । जब उस पर अनावश्यक दबाव पड़ता है अथवा संक्रामक जीवाणुओं का आक्रमण होता है, तब उस भाग पर सूजन आती है और असह्य वेदना होती है। इस सम्बन्ध में चित्र २.३८ का अवलोकन करिये।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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