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________________ रक्षात्मक Anti-bodies को तैयार करके उनके द्वारा पीरिया और जैनटीरिया के उत्पादकों को नष्ट करना। ख) विदेशी जीवाणुओं को घेरकर नष्ट करना। ग) आवश्यक्तानुसार रक्त का थक्का बनाकर (blood clotting) द्वारा रक्त का शरीर से बाहर बहने को रोकना। iii) नियंत्रण क) शरीर के ताप के नियंत्रण में सहायता करना। ख) थोड़े से क्षार प्रकृति के द्वारा शरीर के pH balance ( शरीर में अम्ल और क्षार - Acid और alkali के बीच संतुलन) को सही रखना। ग) Cells के जलीय भाग को घुले हुए ions तथा proteins के द्वारा नियन्त्रित रखना। धमनियाँ एवम् नसों का जाल, जिनमें क्रमशः शुद्ध एवम् अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है, चित्र २.२२ में दर्शाया गया है। (ख) हृदय - Heart (चित्र २.२३) इसका साइज एक मुट्टी के बराबर होता है। यह एक पोला, स्नायुयुक्त, चार खानों वाला रक्त को पम्प करने वाला अङ्ग है। इसका वजन पुरूषों में लगभग ३०० ग्राम तथा स्त्रियों में लगभग २५० ग्राम होता है। शारीरिक विश्राम की स्थिति में यह एक मिनट में लगभग ७०-७२ बार धड़कता है और इतने समय में लगभग ५ लीटर रुधिर इसमें से गुजरता है। जब हृदय सुकड़ता है तो ऊपर के दोनों भाग right and left auricles एक साथ सुकड़ते हैं, तो अशुद्ध रक्त फेफड़ों में तथा शुद्ध रक्त पूरे शरीर में पहुँचता है। हृदय इसको बलपूर्वक धकेलता है और इसको हृदय का संकोचन (Systole) कहते हैं। जब हृदय का विकोचन (expansion or relaxation) होता है तो दायाँ ऊपर के भाग में पूरे शरीर से अशुद्ध रक्त आता है और बाँए 'भाग में फैफड़े से शुद्ध रक्त आता है। इसको हृदय का विकोचन (diastole) कहते हैं। इसी के आधार पर हृदय के दो प्रकार के सिस्टोलिक प्रैसर (Systolic pressure) और डायस्टोलिक प्रैसर (Diastolic
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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