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________________ my M .." PM . " 4 " . RAJA - 41. -एन साज . . . LATY EPE 113 समुद्र-पर्वत न्यभागी सपा पंचम कालकी आदि की सी रचना (दुःखमाकाल) (आधारः जैन सिद्धान्त दर्पण, विरचित श्री स्याद्वार वारिधि पं. गोपाल दास वरैया-मोरेना मध्यलोक में || प्रारम्भ के द्वीप-समुद्र अन्त के १६ द्वीप-समूह | अकृत्रिम जिनभवन | जम्बूद्वीप |७ सौनयर १ मनःशिल |११ नागवर सुमेरु पर्यत १६ |लवणसमुद्र | नन्दीश्वर २ हरिताल |१२ भूतवर थातकी- ६ अरुणवर कुलाचल |१३| यमवर |सिन्दूर E बिजयाद्धपर्वत ३४ खण्ड द्वीप १० अरुणाभास श्यामक |१४| देवघर बक्षार पर्वत १६ कालोदधि ११ कुंडलवर ५ अंजन १५/अहीन्द्रवर 5 गजदन्त पर्वत ४ | समुद्र १२ शखवर | ६ | हिंगुलिक १६ स्वयम्भूजम्बू-शाल्मलि २ | १३ रुचकवर रूप्यवर | रमण | वारुणीवर -वृक्ष |१४| भुजनंगवर सुवर्णवर धातकीखण्ड द्वीप क्षीरवर |१५| कुशवर वज्रवर पुष्करार्द्ध द्वीप १५६ घृतबर |१६|क्रौंचावर वैडूर्यवर मानुषोत्तर पर्वत नन्दीश्वर द्वीप क्रम १६ के पश्चात असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बाद मनःशिल द्वीप है कुण्डलवर द्वीप रुचकवर द्वीप चित्र १.०७ योग - ४५८ क्रम ३ से १६ तक द्वीपसमूह के नाम समान sankran ४ द्वीय-समुद्र के नाम समान हैं ३ १५६ मध्यलोक
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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