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-एन साज
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समुद्र-पर्वत न्यभागी सपा पंचम कालकी आदि की सी रचना (दुःखमाकाल) (आधारः जैन सिद्धान्त दर्पण, विरचित
श्री स्याद्वार वारिधि पं. गोपाल दास वरैया-मोरेना मध्यलोक में || प्रारम्भ के द्वीप-समुद्र अन्त के १६ द्वीप-समूह | अकृत्रिम जिनभवन | जम्बूद्वीप |७ सौनयर १ मनःशिल |११ नागवर सुमेरु पर्यत १६
|लवणसमुद्र | नन्दीश्वर २ हरिताल |१२ भूतवर
थातकी- ६
अरुणवर कुलाचल
|१३| यमवर
|सिन्दूर E बिजयाद्धपर्वत ३४
खण्ड द्वीप १० अरुणाभास श्यामक |१४| देवघर बक्षार पर्वत १६
कालोदधि ११ कुंडलवर ५ अंजन १५/अहीन्द्रवर 5 गजदन्त पर्वत ४
| समुद्र १२ शखवर | ६ | हिंगुलिक १६ स्वयम्भूजम्बू-शाल्मलि २ |
१३ रुचकवर
रूप्यवर | रमण | वारुणीवर -वृक्ष
|१४| भुजनंगवर सुवर्णवर धातकीखण्ड द्वीप क्षीरवर |१५| कुशवर
वज्रवर पुष्करार्द्ध द्वीप १५६
घृतबर |१६|क्रौंचावर वैडूर्यवर मानुषोत्तर पर्वत नन्दीश्वर द्वीप
क्रम १६ के पश्चात असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बाद मनःशिल द्वीप है कुण्डलवर द्वीप रुचकवर द्वीप
चित्र १.०७ योग - ४५८
क्रम ३ से १६ तक द्वीपसमूह के नाम समान
sankran ४
द्वीय-समुद्र के नाम समान हैं
३
१५६
मध्यलोक