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________________ व्यक्ति के शरीर में इस द्रव की मात्रा लगभग १५० मिलीलीटर होती है। यह प्रवाही मस्तिष्क व मेरुदण्ड को पोषण प्रदान करता है, तथा शरीर के सभी अवयवों को काम करने की उपयुक्त शक्ति देता है। इसमें प्रोटीन, ग्लूकोज तथा विभिन्न लवण (पोटेशियम, कैलशियम आदि) छोटी मात्रा में विद्यमान होते हैं। १०० मिली लीटर मस्तिष्क - मेरुजल निम्नलिखित तत्वों से बनता है : प्रोटीन १५-४५ मिलीग्राम ग्लूकोज ४०-५० मिलीग्राम क्लोराइड ७२०-७५० मिलीग्राम कोष ०.५ + भक्षक कोष आदि मस्तिष्क-मेरुजल रुधिर के साथ घुलमिल नहीं पाता। फिर भी कुछ सिद्ध योगी विशेष यौगिक क्रियाओं से मुँह के ऊपरी भाग (तालु) के द्वारा इस प्रवाही को अल्प मात्रा में सोख लेते हैं। इस क्रिया को “अमृतपान-क्रिया (Drinking of Nectar) कहते हैं। इस तरह के पान से भूख प्यास एकदम कम हो जाती है। मस्तिष्क की संरचना व कार्य कलाप के सम्बन्ध में चित्र २.०७, २.०८ तथा २.०६ का अवलोकन करिए। अध्याय -७ संवेदनशील अंग (इन्द्रियाँ)- Senses (क) स्पर्शन - त्वचा - त्वचा शरीर को बाहरी क्षति एवम् संक्रमण से एक जल-निरोधक अवरोध के द्वारा बचाती है। यह स्पर्शन के लिए संवेदनशील होती है, शरीर के ताप को नियंत्रित करने में सहायक होती है तथा अपनी स्वतः ही मरम्मत करती है। त्वचा में विभिन्न प्रकार की चेताओं के सिरे आते हैं जिससे प्रकाश, स्पर्शन, दबाव, ठंड, गरमी तथा दर्द का ज्ञान होता है। ये मस्तिष्क को विद्युतीय सिग्नल भेजते हैं। २.१७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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