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________________ अचलात्म- 449425663149385461975295566818875162751606526724516 96027238400000000000000000000000000000000000000000000 0000000000000000000000000000000000000000000000वर्ष =8431x100 वर्ष अर्थात १५० उक्त अंक प्रमाण वर्षों का १ अचलात्म होता है। इस प्रकार वर्षों की गणना जहां तक उत्कृष्ट संख्या प्राप्त हो, वहां तक इस संख्यात काल को ले जाना चाहिये अर्थात ग्रहण करना चाहिये। व्यवहार/ उद्धार/अद्धा पल्य (पल्योपम)/ सागर (सागरोपम) इनका वर्णन परिशिष्ट १.०२ में देखें। कल्प काल बीस कोड़ा कोड़ी अद्धा सागर के समूह को कल्प कहते हैं। इसके दो भाग होते हैं- एक अवसिर्पणी और दूसरा उत्सर्पिणी। इन दोनों ही का प्रमाण दस-दस कोड़ा कोड़ी सागर का है। अवसर्पिणी के छह भाग हैं- १. सुषमा सुषमा (४ कोड़ा-कोड़ी सागर) २. सुषमा (३ कोड़ा कोड़ी सागर) ३. सुषमा दुःषमा (२ कोड़ा कोड़ी सागर) ४. दुःषमा सुखमा (१ कोड़ा कोड़ी सागर में से ४२००० वर्ष कम) ५. दुःषमा (२१ हजार वर्ष) और ६. दुःषमा दुःषमा (२१ हजार वर्ष)। उत्सर्पिणी काल में उल्टा क्रम है, अर्थात दुःषमा दुःषमा, दुःषमा, दुःषमा सुषमा, सुषमा दुःषमा, सुषमा और सुषमा सुषमा। यह काल परिवर्तन केवल ढाई द्वीप के अन्तर्गत ५ भरतक्षेत्रों और ५ ऐरावत क्षेत्रों की कर्मभूमियों में ही होता है । सन्दर्भ- (१) तिलोय पण्णत्ती भाग २, विरचित श्री यतिवृषभाचार्य, टीकाकर्ती आर्यका श्री १०५ विशुद्धमती माताजी।। (२) हरिवंश पुराण, श्री मज्जिनसेनाचार्य विरचित, अनुवाद डा० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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