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________________ नमस्कार होवे । मानुष क्षेत्र में अवस्थित समस्त कृत्रिम जिन भवनों एवम् उनमें विराजित समस्त जिन प्रतिमाओं के चरणों में मेरा भावपूर्वक नमस्कार होवे । श्री सम्मेदशिखर, चम्पापुर (मन्दारगिरि), पावापुर, गिरनारजी, कैलाश पर्वत, राजगृही, गुणावा, द्रोणगिरि, नैनागिरि, मुक्तागिरे, सिद्धवरकूट, गजपंथा, शत्रुञ्जय पर्वत, पावागिरि, कुंथलगिरि, सोनागिरि, उदयगिरि, खण्डगिरि, गुल्जारबाग (पटना), अहारजी, तारङ्गाजी, मांगीतुंगी, बड़वानी एवम् ढाई द्वीप में विराजित समरत सिद्धक्षेत्र, तथा समस्त अतिशय क्षेत्र व अन्य पुण्य भूमियों (जिन कल्याणकों के स्थान आदि) के प्रति मेरा त्रिकाल भक्तिपूर्वक नमस्कार होवे । रात्रि भोजन रात्रि भोजन करन से, धर्म कर्म सब जाय । दिन में भोजन शुद्ध जो, करें रोग न आय ।। अनछना पानी अनछने पानी के सबसे छोटे बिन्दु में सुप्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता केप्टिन स्ववोर्सवी द्वारा सूक्ष्मदर्शी ( माइक्रोस्कोप) यन्त्र से देखकर ली गयी फोटो के अनुसार ३६४५० सूक्ष्म जन्तु होते हैं । अतः दया धर्म पालने एवम् रोगों से बचने की, अर्थात् धार्मिक एवम् स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टिकोण से पानी | छानकर ही पीना चाहिए। १.१५४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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